वाणी जब नयनों से छलके
दो दिल में हो एक स्पंदन,
हो केशगुच्छ के अवगुंठन में
अधरों का अधरों से मिलन –
जब अलि के नीरव गुंजन से
सिहरित हो, पुष्पित कोमल तन,
जब भाव बहे सरिता बनकर
भाषा हो मृदुल, मंद समीरण –
प्रिये तभी होता है प्राणों का
जीवन से आलिंगन.
जब पवन चले औ’ किलक उठे
कलियों का दल इठलाकर,
जब तरु की शाखों में जाग उठे
उन कोमल पत्रों का मर्मर,
जब ओस बिंदु को मिलता हो
तृण का कम्पित अवलम्बन –
बंधु तभी मुखरित होता है,
यह जग, जीवन, अंतर्मन.
जब सांझ ढले इस क्लांत धरा पर
क्षितिज रंजित हो शर्माकर,
शांत नदी के वक्ष:स्थल पर
लहर थमे जब उठ उठ कर,
जब पीड़ा आनंद बने, हो व्याप्त भुवन में हँस हँस कर –
हे नाथ समाधित होता है तब,
तुममें यह मन, तुममें यह तन.
---------------------------------------------
फरीदाबाद जुलाई 1989
Comment
मित्र शरदिंदु जी,
मैंने आपकी कविता पढ़ी ही नहीं,
उसके सौन्दर्य को सराहा है...
जब ओस बिंदु को मिलता हो
तृण का कम्पित अवलम्बन – .... वाह, वाह!
बंधु तभी मुखरित होता है,
यह जग, जीवन, अंतर्मन.
सादर,
विजय निकोर
आदरणीय विजय जी, आपने मेरी कविता पढ़ी, मैं धन्य हो गया.....आखिर किसीने पढ़ी तो.
आदरणीय शरदिंदु जी:
आपकी यह कविता न जाने कैसे पढ़ने से रह गई।
अधरों का अधरों से मिलन –
जब अलि के नीरव गुंजन से
सिहरित हो, पुष्पित कोमल तन,
जब भाव बहे सरिता बनकर
भाषा हो मृदुल, मंद समीरण –
प्रिये तभी होता है प्राणों का
जीवन से आलिंगन. ......................बहुत ही सुन्दर भाव हैं
आपने कोमल भावनाएँ अच्छी पिरोई हैं।
बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
आश्चर्य! " अनुभूति " अननुभूत रह गयी......
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online