For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sharadindu mukerji's Blog (41)

शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.

शुभ जन्मदिन ओ.बी.ओ.

जन्मदिन फिर से आया है

नए वसंत का हार लिए

कविता, गीत, मुक्तक, ग़ज़ल के

अनुपम सब उपहार लिए.

(2)

कहीं परिचर्चा, कहीं टिप्पणी

कहीं पर मुक्त विचार मिले

यह वह उपवन है जिसमें

शिक्षा का हर फूल खिले.

(3)

मन की भावना व्यक्त करना ही

शब्दों का खेल है

फिर भी देखो विचित्र विचारों का

यहाँ कैसा मेल है.

(4)

यहाँ अग्रज हैं, हैं अनुज भी

कहीं लेखनी साज़…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 1, 2016 at 2:49am — 4 Comments

बगावत

बगावत

बगावत की है कलम ने

उसे भी अब आरक्षण चाहिए-

कुछ भी लिख दे

पुस्तकाकार में छपना चाहिए!

मैं अड़ गया अपना ईमान लेकर

तो

कलम ने अट्टहास किया,

तोड़ा, मरोड़ा, उखाड़ फेंका

उन शब्दों की पटरी को

जिन पर भूले-भटके

मेरी कल्पना की रेलगाड़ी

कभी-कभी खिसकती महसूस होती थी

और मैं बंद खिड़की के भीतर से

अनायास देखता रहता था पीछे सरकते

लहलहाते हुए, सूखाग्रस्त या

बाढ़ के गंदे पानी में…

Continue

Added by sharadindu mukerji on February 25, 2016 at 9:52pm — 1 Comment

जाने क्यों

जाने क्यों

क्या ढूँढ़ने उतरते हो

रात के अंधेरे में ओ कोहरे,

चुपचाप, इस धरती की छाती पर

फिर अक्सर थक कर सो जाते हो

पत्तियों के ठिठुरते गात पर

और सहमी, पीली पड़ गयी

तिनके की नोक पर –

गाड़ी के शीशे से

न जाने कहाँ झाँकने की कोशिश में

चिपक जाते हो तुम,

अक्सर.

सुबह की थाप तुम्हें सुनायी नहीं देती

उद्दण्ड बालक की तरह

धरती का बिस्तर पकड़कर,

मुँह फेरकर सोये रहते हो

जब तक कि फुटपाथ पर

रात भर करवटें…

Continue

Added by sharadindu mukerji on December 16, 2015 at 2:30am — 6 Comments

एक पहाड़ी स्त्री का दर्द

एक पहाड़ी स्त्री का दर्द

 

मेरे और उनके बीच

एक पारदर्शी दीवार खड़ी है.

वे हँसती, ठिठोली करती

कभी बुरांश की लाली को छेड़ती

चाय के बागानों में उछलती कूदती

मुझे बुलाती हैं –

मैं पारदर्शी दीवार के इस पार

छटपटाकर रह जाती हूँ.

जब काले-सफेद बादलों के हुजूम

आसमान से उतरते, वादियों से चढ़ते

उन्हें घेर लेते,

वे ओझल हो जाती हैं और,

मैं प्यासी, बोझिल ह्र्दय ले

पारदर्शी दीवार के इस पार

छटपटाकर रह जाती…

Continue

Added by sharadindu mukerji on July 27, 2015 at 9:30pm — 9 Comments

जिज्ञासा

जिज्ञासा

प्रश्न?

केवल प्रश्नों के घेरे में

छटपटाता जीवन,

चीर दिया आकाश

फिर भी चंचल था यह मन

वह था मेरा प्यारा बचपन ;

हाईफन –

यौवन का हाईफन लाया

तटस्थ जीवन

क्या किसीसे हो पाया

कोई सेतु बंधन !

व्यर्थ,

व्यर्थ ही कुछ क्रंदन ;

अल्पविराम ,

प्रौढ़त्व के अल्पविराम पर

टिका हुआ है जीवन

इच्छाओं के जंगल से निकलकर

जान पाया मन

जीवन है एक उपवन ;

अंत में,

पूर्णविराम के साथ

हे मेरे…

Continue

Added by sharadindu mukerji on June 14, 2015 at 4:52am — 14 Comments

विश्व पुस्तक मेला-2015

विश्व पुस्तक मेला-2015

मेट्रो की घड़घड़ाहट

और ज़िंदगी की फड़फड़ाहट के बीच

कुछ शब्द उभरकर आते हैं

जब-

वरिष्ठ नागरिकों के लिए

आरक्षित आसन पर

नए युग का प्रेमी युगल

चुहल करता है

और-

अतीत की झुर्रियों का फ़ेशियल लिए

लड़खड़ाती हड्डियों का

बेचारा ढाँचा

अवज्ञा की उंगली पकड़कर

अपने गौरवमय यौवन का

सौरभ लेता हुआ

कुछ पल के लिए खो जाता है;

मेट्रो की घड़घड़ाहट थमने लगती है

हड्डियों का ढाँचा

हड़बड़ाहट में चौकन्ना होता…

Continue

Added by sharadindu mukerji on February 18, 2015 at 12:00pm — 19 Comments

प्रार्थना

प्रार्थना

जब सांझ ढलने लगेगी,

जब दिन का कोलाहल

थक कर किसी कोने में

दुबक कर बैठ जाएगा –

तुम्हारे स्पर्श का सिहरन लिए

धीरे-धीरे

आकाश का सभागार

तारों के दीपक से प्रफुल्लित हो उठेगा,

जागृत हो उठेंगी चेतनाएँ

सजीव होने लगेंगे हृदय के तंतु –

नीरवता के उस महाधिवेशन में

अपने अहंकार,

अपने गौरव की सच्ची-झूठी कहानियाँ,

अपनी अदम्य इच्छाओं की दबी आवाज़,

अपने टूटे सपनों का आर्त चीत्कार

और अचानक, लगभग कुछ…

Continue

Added by sharadindu mukerji on September 18, 2014 at 1:00am — 2 Comments

प्रेम दीपक

प्रेम दीपक

 

बंधन में मत बाँध सखी

उन भावों को

जो नित-नित

मानसपट पर चित्रित होते हैं –

स्वप्नों के छंद में बाँध सखी

उन छंदों को

जो पलकों पर पुलकित, अधरों पर बिम्बित होते हैं.

 

नयनों से ढुलके जो दो-चार बूँद सखी

अपने हिय के पत्र-पुष्प पर

टल-मल-टल

उनमें अपनी किरणों को पिरो देना

मेरी पीड़ा के होमकुण्ड में गंगाजल.

जब आग बुझे, कुछ राख उड़े

तम छाए सखी,

उस नीरव हाहाकार को तुम कुचल देना

स्वप्निल रातों…

Continue

Added by sharadindu mukerji on July 19, 2014 at 2:00am — 20 Comments

अमौसी हवाई अड्डे के बाहर

अमौसी हवाई अड्डे के बाहर

 

 

वह देख रहा था

पहचान-पत्र दिखाकर लोगों को जाते हुए

सुरक्षा के घेरे में.

वह स्वयं

सुरक्षा के घेरे से बहुत दूर था

अपनी ही दुनिया में –

लोग कहाँ जाते हैं

उसे क्या मालूम ?

लोगों को क्या मालूम

कि उनकी सुरक्षा के घेरे के बाहर

और भी दुनिया है !

उसने एक बार

दीवार की खिसकी हुई ईंट की जगह

आँख लगाकर देखा था

एक बड़ी सी चमचमाती चिड़िया

कोलतार के लम्बे रास्ते पर…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 29, 2014 at 1:30am — 4 Comments

आँखों देखी - 17 ‘और नहीं बेटा, बहुत हो गया’

आँखों देखी - 17 ‘और नहीं बेटा, बहुत हो गया’

 

 

     मैं ग्रुबर कैम्प के उस अद्भुत अनुभव की यादों में खो गया था. हमारा हेलिकॉप्टर कब आईस शेल्फ़ के 100 कि.मी. चौड़े सन्नाटे को पार करने के बाद शिर्माकर ओएसिस को भी पीछे छोड़ चुका था, मुझे पता ही नहीं चला. अचानक जब धुँधली खिड़की से वॉल्थट पर्वतमाला की दूर तक विस्तृत श्रृंखला नज़र के सामने उभर आयी मैं वर्तमान में वापस आ गया. ग्रुबर आज हमारी बाँयी ओर पूर्व दिशा में था. हमारा लक्ष्य था पीटरमैन रेंज के उत्तरी सिरे…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 24, 2014 at 8:28pm — 5 Comments

आँखों देखी – 16 वॉल्थट में वह पहली रात !

आँखों देखी – 16 वॉल्थट में वह पहली रात !

 

     “थुलीलैण्ड” में क्रिसमस की पूर्व संध्या का अनुभव यादगार बनकर रह गया हमारे मन में. अगले दो दिनों में हेलिकॉप्टर द्वारा कई फेरों में आवश्यक सामग्री जहाज़ से शिर्माकर स्थित भारतीय शिविर, जिसे नाम दिया गया था ‘मैत्री’, तक पहुँचा दिया गया. 27 दिसम्बर 1986 के दिन ‘मैत्री’ को पूरी तरह रहने योग्य बनाकर छठे अभियान के ग्रीष्मकालीन दल के हवाले कर दिया गया. विभिन्न वैज्ञानिक कार्यक्रमों को इसी शिर्माकर ओएसिस में अथवा मैत्री को…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 16, 2014 at 2:00am — 5 Comments

आंखों देखी – 15 बैरागी अभियात्री, साधारण इंसान

आंखों देखी – 15  बैरागी अभियात्री, साधारण इंसान

     आसमान में बादल थे लेकिन दृश्यता (visibility) अच्छी होने के कारण छठे अभियान दल के दलनेता ने दक्षिण गंगोत्री आने का निर्णय लिया. नियमानुसार, जहाज़ के अंटार्कटिका पहुँचने के साथ ही अभियान की पूरी कमान नए दल के दलनेता के हाथों आ जाती है हालाँकि वे हालात के अनुसार लगभग सभी निर्णय शीतकालीन दल के स्टेशन कमाण्डर के साथ विचार-विमर्श करने के बाद ही लेते हैं. शिष्टाचार के अतिरिक्त इसका मुख्य कारण है शीतकालीन दल का विशाल अनुभव…

Continue

Added by sharadindu mukerji on April 8, 2014 at 5:15pm — 4 Comments

उद्घोष

उद्घोष

(ओ.बी.ओ. की चौथी वर्षगाँठ पर ओ.बी.ओ. परिवार के सभी का अभिनंदन करते हुए)

 

गली-गली पवन चली, किलक उठी कली-कली,
महक उठे पराग बिंद, थिरक उठे अलि-अलि.

 

जाग उठा तमाल वन, जाग उठा है हर चमन,
किसी के आगमन के साथ, जाग उठा है हर सपन.

उम‌ड़ रहे जलद दल, घुमड़ रहे वे हो विकल,
कर रहे उद्घोष सब, ये किसी का जन्म पल.

(मौलिक व अप्रकाशित रचना)

Added by sharadindu mukerji on April 1, 2014 at 1:32am — 6 Comments

आंखों देखी -14 एक नये अध्याय की सूचना

आंखों देखी -14 एक नये अध्याय की सूचना

 

05 दिसम्बर 1986 के दिन पहली बार जहाज “थुलीलैण्ड” के साथ हम लोगों का रेडियो सम्पर्क स्थापित हुआ. अभी भी नये अभियान दल को अंटार्कटिका पहुँचने में लगभग तीन सप्ताह का समय लगना था, लेकिन मन में कितने ही मिश्रित भाव उमड़ने लगे. जहाज मॉरीशस के इलाके में था. एक साल पहले वहाँ से गुजरते हुए हम लोगों को जहाज से उतरने की अनुमति नहीं मिली थी. क्या वापसी यात्रा में हम मॉरीशस की धरती पर उतरेंगे ? कौन जाने ! फिलहाल जहाज के आने की प्रतीक्षा है – उसमें…

Continue

Added by sharadindu mukerji on March 31, 2014 at 1:30am — 17 Comments

आंखों देखी – 13 पुराने दिन नयी बातें

आंखों देखी – 13 पुराने दिन नयी बातें

रूसी आतिथ्य के शानदार अनुभव (देखिये आंखों देखी – 12) के बाद नोवो स्टेशन जाने का आकर्षण स्वत: कम हो गया था. हम लोगों ने शिर्माकर ओएसिस के खूबसूरत झील ‘प्रियदर्शिनी’ के किनारे स्थित भारतीय शिविर को साफ़ किया. डेढ़ दो महीने बाद अगले अभियान दल को पहुँचना था अत: यह सुनिश्चित करना कि नए दल के सदस्यों को “मैत्री” पहुँचकर कोई असुविधा न हो हमारा नैतिक दायित्व था. शिर्माकर में हम लोग 12 दिन रहे जिस दौरान हिमनदीय, भूवैज्ञानिक और जीवविज्ञान सम्बंधी…

Continue

Added by sharadindu mukerji on March 21, 2014 at 4:48am — 6 Comments

हमारी अंटार्कटिका यात्रा – 12 वह अनोखा आतिथ्य

हमारी अंटार्कटिका यात्रा – 12 वह अनोखा आतिथ्य

 

        पिछली कड़ी में आपने पढ़ा कि रोमांचकारी 58 घंटे की समाप्ति के बाद हम सभी सुरक्षित अपने स्टेशन के अंदर थे. अगले दिन से ही हम लोग फिर से मंसूबे बनाने लगे रूसी स्टेशन जाने के लिए. सौभाग्य से दो दिन बाद मौसम कुछ अनुकूल होता दिखने लगा. हमने बाहर जाकर अपनी गाड़ियों का हाल देखा तो दंग रह गए. पिस्टन बुली के ऊपर ढेर सारा बर्फ़ तो था ही, भीतर भी पाऊडर की तरह बर्फ़ के बारीक कण हर कोने में…

Continue

Added by sharadindu mukerji on February 10, 2014 at 3:03am — 9 Comments

कवि

कवि
कौन कहता है
मैं कवि हूँ और वह नहीं ?
मैं पेट भर खाने के बाद
बरामदे की गुनगुनी धूप में बैठा हूँ
प्रकृति दर्शन के लिए –
वह,
भूखे पेट
एक कटी पतंग की डोर थामने
आसमान की ओर बेतहाशा भागा जा रहा है
मगर,
आसमान है कि
उससे दूर हटता जा रहा है –
बादल, क्षितिज और
एक कटी पतंग को
अपनी नीलिमा की ओढ़नी में छुपाकर,
कविता की लकीर खींचता हुआ !!!

(मौलिक तथा अप्रकाशित रचना)

Added by sharadindu mukerji on February 6, 2014 at 10:52pm — 10 Comments

आँखों देखी 11 - रोमांचक 58 घंटे

आँखों देखी 11 -  रोमांचक 58 घंटे

 

        मैंने आँखों देखी 9 में ऑक्टोबर क्रांति से जुड़े कार्यक्रम में भाग लेने के लिए रूसी निमंत्रण की ओर इशारा किया था. फिर, हम लोगों के समुद्र के ऊपर पैदल चलने की बात याद आ गयी. सो, पिछली कड़ी (आँखों देखी 10) में रूसी निमंत्रण की बात अनकही ही रह गयी थी. आज मैं आपको वही किस्सा सुनाने जा रहा हूँ.

        हमारे स्टेशन में उनके एक सदस्य की शल्य चिकित्सा के बाद रूसी कुछ विशेष…

Continue

Added by sharadindu mukerji on January 30, 2014 at 8:00pm — 11 Comments

आँखों देखी 10 (जमे समुद्र के ऊपर पैदल)

आँखों देखी 10   जमे समुद्र के ऊपर पैदल

     

      मैं पहले ही कह चुका हूँ कि दो महीने तक अँधेरे में रहने के बाद जुलाई 1986 के अंतिम सप्ताह में हमने पहला सूर्योदय देखा. जैसे-जैसे आसमान में सूर्य की अवस्थिति बढ़ती गयी मौसम खुशनुमा होता गया. अच्छे मौसम का स्वागत करके हम अधिक से अधिक समय स्टेशन के बाहर बिताने लगे थे. मैंने इस बदलते समय के साथ अपने साथियों के अच्छे होते हुए मूड का सदुपयोग करने का निश्चय किया. ‘हिमवात’ की तैयारी में पूरी…

Continue

Added by sharadindu mukerji on January 18, 2014 at 2:00am — 5 Comments

आँखों देखी 9 एक बार फिर डॉक्टर का चमत्कार

आँखों देखी 9  एक बार फिर डॉक्टर का चमत्कार

    हम लोगों के लिए 21 जून 1986 का दिन एक यादगार दिन बनकर रह गया है. आज शीतकालीन दल के वे चौदह सदस्य न जाने कहाँ-कहाँ बिखरे हुए हैं लेकिन उस दिन की स्मृति हम सबके दिल में अपना स्थायी आसन बिछा चुकी है. सुबह से ही मंच आदि को अंतिम रूप दिया जा रहा था. जो नाटक और गायन में अपना योगदान दे रहे थे उनका रिहर्सल देखते ही बनता था. चूँकि दल का रसोईया पूरे कार्यक्रम में अहम भूमिका निभा रहा था, रसोई का दायित्व उन पर छोड़ दिया गया जो…

Continue

Added by sharadindu mukerji on January 10, 2014 at 11:00am — 11 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service