(1)
विधि ने सुंदर गीत रचा,
अलि कुल स्वर सा यह गुंजन –
विश्व चराचर,
अविरत निर्झर,
श्वासों का यह स्पंदन.
कितना विस्मय,
कितना मधुमय,
कितना अनुपम,
मानव जीवन !
(2)
नक्षत्र खचित अम्बर में
किसके, उज्ज्वल स्नेह का प्रकाश ?
किसके इंगित पर मुस्काते हैं
यह धरती और यह आकाश ?
किसके सौरभ से
सुरभित यह मन,
अश्रु शिशिर,
नहीं क्रंदन !
किसके कर में क्रीड़ा करते
जीवन – मरण,
मरण – जीवन -
उसको अर्पित हो तन मन,
उसको अर्पित हो जीवन.
(3)
प्रांगण में हौले हौले
जब ऐसी मधुवात बहे,
जब ऐसे पुष्पों का हार
अपनी कोई बात कहे,
जब पराग पुलकित हो जाये –
प्रमोदित हो उठे चमन,
पीड़ा भी आनंद बने –
तब होगा कोई परिवर्तन
विकसित होगा
अवसादित मन
जीवन यौवन
हर कण हर क्षण.
(4)
जन्मदिन,
यह जन्मदिन है
स्मृतियों का पीला पतझर,
नए वसंत का आश्वासन औ’
कोमल पत्रों का मर्मर.
कौन भेजता
मौन निमंत्रण,
किसका यह सस्वर संकेत !
चंचल हो मन,
उज्ज्वल हो मन
मन ही तन है,
मन ही जीवन.
( मौलिक एवं अप्रकाशित रचना )
Comment
आपका सादर आभार, आदरणीय, कि आपने मेरी समझ को हार्दिक मान दिया है.
सादर
आदरणीय सौरभ जी, हार्दिक आभार स्वीकार करें. आपके प्रोत्साहन मूलक विवेचना ने मेरे तुच्छ प्रयास को एक नयी दिशा दी है - यह एक अर्वाचीन लेखक के लिये किसी भी पुरस्कार से कम नहीं. हृदय से आभारी हूँ.
विशेष भावदशा में उभरे आते शब्द एक वातावरण का निर्माण कर रहे हैं. उस वातावरण में होना जीवन की सुन्दरता को जीना है.
आपके इन भाव-शब्दों के लिए सादर बधाइयाँ, आदरणीय शर्दिन्दुजी.
आदरणीया मीना जी एवं भाई राजेश जी, श्याम नारायण जी तथा पाठक जी, आप लोगों ने मेरी कविता पसंद की, प्रोत्साहन मिला. धन्यवाद.
आदरणीया डॉ.प्राची, आपने मेरी कविता की आत्मा में झांक कर देखा है. यहीं मैं इस रचना की सार्थकता देखता हूँ. एक विदुषी द्वारा प्रशंसा के शब्द मेरे लिये पुरस्कार समान हैं. हृदय से आभारी हूँ.
आपकी रचना के कथ्य की गहनता और शब्द भाव सांद्रता नें बहुत प्रभावित किया...
ज़िंदगी को करीब से सूक्ष्मता से महसूस करके लिखी गयी है ये रचना
अविरत निर्झर,
श्वासों का यह स्पंदन.
कितना विस्मय,
कितना मधुमय,
कितना अनुपम,
मानव जीवन !..............श्वासों की सुर ले ताल पर ज़िंदगी की रागिनी..या बंद ..बहुत सुन्दर !
किसके कर में क्रीड़ा करते
जीवन – मरण,
मरण – जीवन -
उसको अर्पित हो तन मन,
उसको अर्पित हो जीवन.............क्या सुन्दर एहसास शब्द-बद्ध हुआ है अदृश्य सत्ता के प्रति , मन मुग्ध है
हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सुन्दर प्रस्तुति पर.
तत्सम शब्दों के ताने-बाने से बुनी बड़ी सरस रचना आपने प्रस्तुत की है, बहुत भायी आपकी यह रचना, सादर
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
आदरणीय शरदिंदु जी:सुन्दर शब्दावली !
सुन्दर कविता के लिए बधाई।
BAHOOT KHOOB JE......................................
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