For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वातायन निर्वाक प्रहरी था,
बाहर मस्त पवन था
अंदर तो ‘बाहर’ निश्चुप था,
अंतर में एक अगन था.

कितने ही लहरों पर पलकर,
कितने झोंके खाकर
कितने ही लहरों को लेकर,
कितने मोती पाकर –

मैं आया था शांत निकुंज में.

मैं आया था शांत निकुंज में,
एक तूफ़ाँ को पाने
एक हृदय को एक हृदय से,
एक ही कथा सुनाने.

पर निकुंज की छाया में
थी तुम बैठी उद्भासित सी,
थोड़ी सी सकुचायी सी
और थोड़ी सी घबरायी सी.

स्तब्ध रहे कुछ पल
हम दोनों, पलकों पर थी थिरकन,
नीरव होठों पर मुस्काहट थी
और नयनों में सजग सपन.

शुरु हुआ भावों का रिसना,
हृदय कमण्डल से धीरे
बेचैन रगों से होकर पुलकित,
शांत मुखमण्डल पर धीरे.

देखा मैंने होठों की,
पंखुड़ियों को धीरे खिल उठते
भौंरे के तो बंद पंख थे,
पर कमलिनी को खिलते.

प्रकाशमय हो उठा चतुर्दिक,
जब मधुर स्वर गूँजा था
महाकाल के उस मुहूर्त को
मैं अवाक हो पूजा था.

चंचल कोयल तुम कुहक रही थी,
मैं वसंत बस श्रोता था
प्रेममयी तुम मंत्र बनी थी,
प्रेम स्वयं ही “होता” था.

इतने में मुनिया आ बैठा .

इतने में मुनिया आ बैठा,
उन हरित नव शाखों पर
देखा उसने इधर-उधर,
कुछ सहम, ठिठक कर और ठहर कर.

ठहर गयी तुम, ठहर गया मैं,
वातावरण निस्पंद मौन था
अंदर – बाहर के बीच द्वार पर,
देता यह दस्तक कौन था !

मुनिया के होठों का दस्तक,
जब अपने होठों तक पहुँचा
मुखर हुई तुम भीरू मुनिया,
उड़ कर दूर कहीं जा बैठा.

मुझको भी लग गये पंख थे,
सपनों के अम्बर में मैं था
तुम तुम ही थी, मैं मैं ही था,
तुममें मुझमें मय ही मय था.

कथा अकथित रह गयी बीच में,
दी समय ने दस्तक भारी
कर्म धर्म के पालन में
थी, अब जुट जाने की बारी.

‘विदा मित्र’ नयनों ने कहा था,
क्या नहीं सुना तुमने
विदा नहीं मुझको देना था,
(क्या) तभी नहीं चूमा तुमने !

हम तुम अशेष हैं, हैं अमिट हम,
फिर मिलन होगा हमारा
फिर से जग में जाग उठेगी,
उन कोमल भावों की धारा.

तब –
तब कोयल अस्फुट गान करेगी,
मुनिया निडर हो चहकेगा
जीवन के प्रांग़ण में फिर से,
नव वसंत एक महकेगा.

Views: 595

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 22, 2013 at 3:11am

प्रिया बृजेश जी, दो शब्दों से आपने मेरे मन के बाग को नयी हरियाली दी. बहुत बहुत धन्यवाद.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 22, 2013 at 3:08am

श्रद्धेय विजय जी, आपके विचार की प्रतीक्षा रहती है हमेशा. आप जिस तरह स्नेहपूर्ण ढंग से प्रोत्साहन देते हैं उससे डर लगता है कहीं मेरी लेखनी साहस की सीमा पार न कर जाए. सचमुच मन प्रसन्न हो गया. हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 22, 2013 at 3:02am

आदरणीया सावित्री जी, आप स्वयं कोमल हृदया कवयित्री हैं इसीलिये मेरी तुच्छ रचना के मर्म को स्पर्श कर आपने उसे गौरव प्रदान किया है. आभार. इसी प्रकार मुझे प्रोत्साहित करती रहें ऐसी कामना है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 22, 2013 at 2:57am

आदरणीय आमोद जी तथा राजेश कुमार झा जी, बहुत बहुत धन्यवाद आप लोगों की मधुर प्रतिक्रिया के लिये. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on March 22, 2013 at 2:52am

आदरणीया राजेश कुमारी जी, मेरे पास शब्द नहीं आपको आभार व्यक्त करने हेतु. इस रचना में वर्णित चित्र हकीकत है. चौबीस साल पहले मेरा यह व्यक्तिगत अनुभव रहा. आपने जो उत्तम सुझाव दिया है,वह मेरे सर आँखों पर. मेरी मातृभाषा बांग्ला है अत: हिंदी में शब्दों के चयन करते समय बांग्ला का प्रभाव पड़ना विशेष आश्चर्य की बात नहीं. आपका सुझाव बहुत अच्छा है लेकिन शायद "चूक" नहीं हुई है क्योंकि 'विदा' जैसे "किया" या "कहा" जाता है उसी तरह "दिया" भी जाता है. मेरा भाषा ज्ञान बहुत सीमित है. यदि मुझसे गलती हो रही है तो कृपया सुधार कर अनुग्रहीत करें. आपका चिर-आभारी रहूंगा.

Comment by बृजेश नीरज on March 21, 2013 at 6:58pm

बहुत सुन्दर!

Comment by vijay nikore on March 21, 2013 at 6:01pm

ठहर गयी तुम, ठहर गया मैं,
वातावरण निस्पंद मौन था
अंदर – बाहर के बीच द्वार पर,
देता यह दस्तक कौन था !

 

आदरणीय मित्र, बहुत ही आत्मीय कविता लिखी है आपने,

हार्दिक बधाई।

 

सादर और सस्नेह,

विजय निकोर

Comment by Savitri Rathore on March 21, 2013 at 4:45pm

अतिसुन्दर एवं प्रेममयी भावाभिव्यक्ति ! मर्मस्पर्शी रचना ! प्रिय मिलन का सुन्दर चित्रण एवं विदाई का पीड़ापूर्ण वर्णन तथा पुनः मिलन की आशा,सच में यही प्रेम है।इस मनोहर रचना हेतु हार्दिक बधाई,शरदिंदु जी।

Comment by राजेश 'मृदु' on March 21, 2013 at 4:30pm

बहुत अच्‍छी रचना है, आप यूं ही लिखते रहें

Comment by Amod Kumar Srivastava on March 21, 2013 at 12:58pm

तब कोयल अस्फुट गान करेगी, मुनिया निडर हो चहकेगा जीवन के प्रांग़ण में फिर से, नव वसंत एक महकेगा.... bhut hi achha.. chitran..meri shubhkamnayen.. aapko....

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
5 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service