साथ क्या है ?
एक भ्रम के सिवाय
एक भुलावा रिश्तों का
झूठा दिलासा अपनों का
क्या सच में कोई होता है साथ ?
आखिर को झेलने होते हैं
दुःख अकेले
उठानी होती है पीड़ा
टीसों की
जज्ब करना होता है दर्द
खुद ही
साथ चलते अपने
साथ चलते रिश्ते
कब तक कितने साथ होते हैं?
अकेला पैदा हुआ इंसान
ताउम्र होता है अकेला
उसकी ख़ुशी ,दुःख
भी नहीं होते सिर्फ उसके
जुड़े होते हैं वे भी दूसरों से
और उनकी मर्जी के अनुसार
वे भी तो छोड़ देते हैं साथ
सच तो ये है
कि खुद इंसान भी
नहीं हो पाता खुद अपना
नहीं दे पाता खुद का साथ
दूसरों की इच्छा आकांक्षाओं के लिए
जब तब छोड़ देता है खुद का साथ
और किसी के साथ के
भ्रम में ही गुजार देता है जिंदगी .
कविता वर्मा
ये रचना मौलिक और अप्रकाशित है
Comment
अच्छी रचना के लिए बधाई कविता वर्मा जी - किन्तु दुनिया में आने के बाद आपसी सहयोग से ही सब काम सध
सकते है | इसलिए आये अकेले, जावे भी अकेले पर रहे सभी के साथं घुलमिल, यही सकारात्मक सोच होगी |
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कविता जी, आपने जीवन का एक कड़वा सत्य की ओर इशारा किया है.लेकिन सकारात्मक सोच यह भी तो कहती है कि हमें रिश्तों का
भ्रम छोड़ कर सुख दुख में एक समान रहना चहिये अन्यथा जिंदगी नसूर बन जाती है . जहाँ भी थोड़ी सी खुशी मिल जाए इस बेदर्द दुनिया में बहुत है .धन्यवाद
कविता जी, आपकी रचना के भाव अच्छे लगे। बधाई।
सादर,
विजय निकोर
साथ क्या है ?
एक भ्रम के सिवाय
एक भुलावा रिश्तों का
झूठा दिलासा अपनों का
क्या सच में कोई होता है साथ ?
आखिर को झेलने होते हैं
दुःख अकेले
कविता जी, कितना सच कहा है आपने ?वास्तव में कोई भी साथ नहीं होता,होता है तो केवल साथ होने का एक भ्रम। मन को छूने वाली भावाभिव्यक्ति ............... बधाई हो।
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