For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माथुर साहब बड़े सुलझे हुए आदमी है ।जीवन की संध्या में वे आगे की सोच रखते हैं । इसलिए उन्होंने उनके बाद उनके मकान के बंटवारे के लिए अपने दोनों बेटों और बेटी को बुला कर बात करने की सोची ताकि उनके दिल में क्या है ये जान सकें । 
 
बेटों ने सुनते ही कहा पापा आप जो भी निर्णय करेंगे हमें मंजूर होगा । लेकिन बेटी ने सुनते ही कहा हाँ पापा मुझे इस मकान में हिस्सा चाहिए ।माथुर साहब और उनके दोनों बेटे चौंक गए । माथुर साहब की बेटी की शादी बहुत बड़े घर में हुई थी । उसके लिए उनके मकान का हिस्सा बहुत मायने नहीं रखता था । फिर भी उसकी हिस्से की चाह? स्वाभाविक था एक कडवाहट सी उनके मुंह में घुल गयी । साथ ही ये ख्याल आते ही उनकी नज़रें झुक गयीं की उनकी तथाकथित प्रगतिशीलता बेटी के हिस्सा माँगते ही बगलें झांकने लगी थी।
फिर भी प्रकट में उन्होंने कहा हाँ बेटी बता तुझे इस मकान में कौन सा हिस्सा चाहिए?
पापा मुझे इस मकान का सबसे बड़ा हिस्सा चाहिए । आप अपनी वसीयत में लिखियेगा की मेरी पूरी जिंदगी इस घर के दरवाजे मेरे लिए हमेशा खुले रहें । 
माथुर साहब मुस्कुरा दिए और दोनों भाइयों ने बहन को गले लगा लिया । जरूर बहना तेरा ये हिस्सा हमेशा बना रहेगा । अब बंटवारे की जरूरत नहीं थी । 
 

Views: 468

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by manoj shukla on April 18, 2013 at 6:53am
बहुत ही सुन्दर लघुकथा लिखा है आपने....बधाई स्वीकार करें आदर्णीया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2013 at 7:54pm

सच कहा आज भी लोगों की सो काल्ड विकास शीलता लड़की का जायदाद में कुछ मांगने पर बौखला जाती है भले ही मकान बेटों की मांग  पर दो हिस्सों में बटेगा पर लड़की ने  क्यों माँगा यहीं पता चल जाता है की लोगों की क्या मानसिकता है इसी कहानी में यदि लड़की सचमुच मांग लेती तो भाई उससे रिश्ता वहीँ ख़त्म कर देते हर लड़की ये जानती है इसी लिए कोई भी मांग नहीं करती अब समाज से यही सवाल है की क्या रिश्ते सिर्फ लड़कियों को ही निभाने चाहिए लडको को नहीं बहनों को ही भाइयों की चिंता होनी चाहिए भाइयों को नहीं ??सही तो ये होता की जब भाई बटवारे की बात कर रहे हैं तो बहन को भी साथ लें या पिता को उस वक़्त बेटी से खुद कहना चाहिए किन्तु नहीं अभी पूर्णतः विकसित मानसिकता बहुत दूर है आपकी यह लघु कथा जिसका अंत सभी को अच्छा  लगेगा किन्तु बहुत से सवाल अपने पीछे छोड़ता है। बहुत बढ़िया कहानी लिखी है बहुत- बहुत बधाई।  

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 11:40am

अगर यही सोच रहे तो सबका जीवन खुशहाल रहे ! बहुत सुन्दर भाव और बढ़िया सन्देश देती लघु कथा

Comment by बृजेश नीरज on April 16, 2013 at 7:31pm

प्रगतिशीलता पर व्यंग्य करती सुखद अंत में सुन्दर संदेश देती लघु कथा। बधाई स्वीकारें।

Comment by Sonam Saini on April 16, 2013 at 1:39pm

आदरणीय कविता जी नमस्कार
एक सीख देती अछि लघु कथा .....शुभकामनाये

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 16, 2013 at 1:31pm

बहुत ही सुंदर लघु कथा आदरनेया सादर बधाई स्वीकार कीजिए 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2013 at 9:26am

आदरणीया कविता जी, लघुकथा बहुत ही अच्छी हुई है, कानून जो भी अधिकार दे दे, किन्तु दिलों में अधिकार तो स्वयं को ही बनाना पड़ता है, इस संदेशपरक लघुकथा पर ह्रदय से बधाई आदरणीया । 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 11:22pm

आदरणीया कविता वर्मा जी सुन्दर संदेश देती लघुकथा. जायदाद में बेटी के हिस्से के लिए कुछ अच्छे कानून की दरकार है. बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है,…"
3 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++   उसे ही कुंभ आना है, पुन्य जिसको पाना है, पहुँचे लाखों…"
3 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
21 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- झूठ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति और प्रशंसा से लेखन सफल हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . पतंग
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post शर्मिन्दगी - लघु कथा
"आदरणीय सौरभ जी सृजन के भावों को मान देने एवं सुझाव का का दिल से आभार आदरणीय जी । "
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . जीत - हार
"आदरणीय सौरभ जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक प्रतिक्रिया एवं अमूल्य सुझावों का दिल से आभार आदरणीय जी ।…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। सुंदर गीत रचा है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। सुंदर गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-171
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।भाई अशोक जी की बात से सहमत हूँ। सादर "
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service