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लघु कथा : ऑनर किलिंग

बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.

तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह कागज़ निकाला और आँखों को पोंछ पढने लगे. पापा मै ऐसे अकेले विदा नहीं लेना चाहती थी. बिटिया की आँखों में उन्हें आंसू झिलमिलाते नज़र आये.

चिता पर बिटिया को देख उनकी आँखे भर आयीं उसे इशारा कर उन्होंने अपने पास बुलाया और जेब से सिन्दूर की डिबिया निकाल कर उसकी ओर बढ़ा दी. हतप्रभ से डबडबाई आँखों से उसने डब्बी लेकर उसकी मांग में सिन्दूर भरा और रोते हुए उसके चेहरे पर झुक कर उसका माथा चूम लिया. उन्होंने जलती लकड़ी उसे थमा दी और बिटिया से माफ़ी मांगते हुए उसके सिरहाने वह कागज़ रख दिया. जलते हुए कागज़ के साथ उन्होंने ऊँची जाती का अभिमान भी जला डाला था.

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Ashok Kumar Raktale on April 22, 2013 at 11:11pm

आदरणीया सादर इतना अच्छा विषय चुना किन्तु इतनी अधिक अस्पष्टता की एक एक पंक्ति को कई कई बार पढ़कर भी बात साफ़ नहीं हो रही है. मुझे लगता है इसपर ध्यान रखा जाना था.

Comment by manoj shukla on April 21, 2013 at 7:09am
बहुत ही सुन्दर कथा....बधाई स्वीकार करें आदर्णीया
Comment by coontee mukerji on April 20, 2013 at 3:01am

ऐसे लोग पागल होते हैं......honour killing  ...क्या होता है .? एक विकृत मानसिकता के सिवाय कुछ नहीं .कविता जी .भाई नीरज जी

ने सच कहा है कि शीर्षक रचना का दर्पण होता है . सुंदर प्रयास के लिये बहुत बधाई . सादर कुंती .

Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 10:47pm

मेरे कहे को आपने मान दिया इसके लिए आभार! शीर्षक आगे कहीं और प्रकाशित करते समय बदल लीजिएगा।

Comment by Kavita Verma on April 18, 2013 at 10:42pm

ji brajesh ji aapka kahna bilkul sahi hai ..paribhasha aur sheershak alag alag cheez hai ..main ispar vichar karungi ..abhi koi upyukt sheershak mil soojh nahi raha hai ..sudhi jano ke sahyog se vichar shrukhla aage badhegi aisi aasha hai ..abhar ...

Comment by Kavita Verma on April 18, 2013 at 10:38pm

aadarneey sandeep ji aapki bat sahi hai prem jeene ki uraja deta hai lekin prem me rode vyakti ko tod bhi dete hai ...ye bhi samaj ki sachchaiyon ka ek pahlu hai jise itane asani se badla nahi ja sakta ...aapne itane dhyan se is laghu katha ko padha aur apne vichar diye aapka bahut bahut abhar..

Comment by बृजेश नीरज on April 18, 2013 at 10:37pm

आदरणीय कविता जी यह आपकी लघुकथा की गुणवत्ता का प्रश्न नहीं। उसके लिए आपको बधाई मिल रही है और मिलती रहेगी।
यहां प्रश्न शीर्षक है। आपने जो परिभाषा उपलब्ध करायी है उससे मैं सहमत हूं लेकिन बहना, शीर्षक रचना का आईना होता है। उससे पता चलता है कि रचना का उद्देश्य और कहन क्या है। उस लिहाज से इस कथा का यह शीर्षक उपयुक्त नहीं है।
सादर!

Comment by Kavita Verma on April 18, 2013 at 10:17pm

The so-called "honour killings" are murders by families on family members who are believed to have brought "shame" on the family name.

Some victims are driven to suicide from the pressure of their families.honour killing ki defination ke anusaar parivaar dwara hatya ya aatmhatya ke liye prerit karna honour killing hai .

isliye mujhe lagta hai ye sheershak upyukt hai.lekin "better of best " ki gunjaish hamesha rahti hai ..sudhijano ki raay ka swagat hai ...

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 18, 2013 at 10:10pm

मुझे आत्महत्या जैसे संकीर्ण क़दमों से घृणा है आदरणीया ....प्रेम सदैव जीने की राह प्रसस्त करता है न की मरने की .......प्रेम तो एक ऊर्जा है जिससे मृत में जीने की चाह उत्पन्न हो जाए .......क्षमा चाहता हूँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2013 at 10:01pm

लघुकथा अच्छी है, यह स्पष्ट नही हो रहा कि मामला आनर किलिंग का है या सुसाइड का | बधाई इस लघुकथा पर |

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