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भाई श्री बिन्ध्येवरी त्रिपाठी जी, मै तो अभी भी आप गुनी जनों से ही सीख रहा हूँ और आपकी समाती होने पर और
आत्मबल मिलता है | आपका हार्दिक आभार
भाई विन्ध्येश्वरी जी बहुत सुन्दर दोहे रचे हैं आपने!
//मालिक सबका एक है, खुदा गॉड भगवान।//
फिर भी लोग धर्म के नाम पर रोज झंडा लिए फसाद किए रहते हैं। ऊपर वाला सबको राह दिखाए।
इस रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें।
नवरात्रि और नवसंवत्सर की शुभकामनाएं।
इश्वर भक्ति के दोहे सुन्दर है बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी जी - इस दोहे को निम्न प्रकार देखे आदरणीय (सुगमता कि द्रष्टि से )
ईश प्राप्ति निज खोज है, खोज सके तो खोज।
मोह जाल में फँस रहा , बाहर भटके रोज |
आदरणीय मित्रवर त्रिपाठी जी आपने जितना सुन्दर विषय चुना है दोहे भी उतने ही सुन्दर हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आत्मरूप में जाग नर, भटक नहीं अन्यत्र।
तुझ में ईश्वर ईश तू, तू ही तू सर्वत्र॥
आदरणीय, सभी दोहे बहुत अच्छे हैं, विशेषकर उपरोक्त पंक्तियाँ. लेकिन यहीं पर एक सुझाव है. यदि " तुझ में ईश्वर ईश तू...." की जगह कहें " तुझ में ईश्वर तू ईश में, तू ही तू सर्वत्र " तो कैसा रहेगा ? मेरे होंठ जैसे पढ़ते हैं, कान जैसे सुनते हैं उसी के अनुसार यह सुझाव दे रहा हूँ. अन्यथा न लीजियेगा. सुंदर विचारों को रूप देने के लिये अभिनंदन.
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