For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उजाला चाहते हैं वज्म में खुद जलना होगा,
सफर तय करना है तो गिर कर सम्भलना होगा।
इतनी आसानी से मंजिल नहीं मिलती यारों,
जिन्दगी की रफ्तार को कुछ बदलना होगा॥

मंहगाई की रफ्तार यूँ बढ़ती जा रही है,
इसी के इर्द- गिर्द दुनिया सिमटती जा रही है।
तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥

सुना है उसने एक नई कार खरीद ली,
समझता है जिन्दगी में रफ्तार खरीद ली।
पर क्या पता उस नादान अहमक को,
अपने पाले में मुसीबत बेकार खरीद ली॥

जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।
तो होती है खुशियों की बारिस सदा,
अगरचे हर कदम पर शूल होते हैं॥

Views: 597

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 15, 2013 at 4:03pm

बहुत सुन्दर और सामयिक मुक्तक के लिए बधाई श्री बिन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 15, 2013 at 8:57am

वाह! बढ़िया मुक्तक.

 

Comment by Kedia Chhirag on April 14, 2013 at 7:17pm

बेहद ही सुन्दर एवं सारपूर्ण अभिव्यक्ति ....हार्दिक बधाई भाई ....

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 14, 2013 at 5:22pm

जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।
तो होती है खुशियों की बारिस सदा,
अगरचे हर कदम पर शूल होते हैं॥

आदरणीय विनय जी 

सत्य है. 

बधाई 

सादर 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 14, 2013 at 4:10pm

आ0 विन्ध्येश्वरी त्रिपाठी विनय जी, ’तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥...’ अतिसुन्दर। बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by vijay nikore on April 14, 2013 at 1:55pm

//जिन्दगी के भी कुछ उसूल होते हैं,
अगर हम उनके माकूल होते हैं।//

अति सुन्दर। बधाई।

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on April 14, 2013 at 1:46pm

मंहगाई की रफ्तार यूँ बढ़ती जा रही है,
इसी के इर्द- गिर्द दुनिया सिमटती जा रही है।
तिस पर ये बेरोजगारी घोटाले और लूट,
ये जिन्दगी इक दलदल में बदलती जा रही है॥

सटीक टिप्पणी भाई //
सुन्दर हार्दिक बधाई

Comment by coontee mukerji on April 14, 2013 at 9:40am

सुना है उसने एक कार खरीद ली

समझता है जिंदगी में रफ्तार खरीद ली .बहुत सुन्दर . सादर कुंती

Comment by बृजेश नीरज on April 13, 2013 at 11:53pm

उसूलों की बात अब यहां समझता कौन है
बेवजह की नुमाइश से भी बचता कौन है
हर कोई भागता दौड़ता नजर आएगा
ठोकरों के बिना आखिर सम्हलता कौन है

विन्ध्येश्वरी भाई इस सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकारें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 184 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। विस्तृत टिप्पणी से उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Monday
Chetan Prakash and Dayaram Methani are now friends
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
""ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179 को सफल बनाने के लिए सभी सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद।…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी, प्रदत्त विषय पर आपने बहुत बढ़िया प्रस्तुति का प्रयास किया है। इस…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"बुझा दीप आँधी हमें मत डरा तू नहीं एक भी अब तमस की सुनेंगे"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर विस्तृत और मार्गदर्शक टिप्पणी के लिए आभार // कहो आँधियों…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"कुंडलिया  उजाला गया फैल है,देश में चहुँ ओर अंधे सभी मिलजुल के,खूब मचाएं शोर खूब मचाएं शोर,…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service