छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।
मौलिक / अप्रकाशित
गोहन = साथी-संगी
गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
गोही = गुप्त
नरदारा=नपुंसक
नरभूमि=भारतवर्ष
फुदकी=छोटी चिड़िया
Comment
नरदारा! वाह! बहुत खूब कहा है आदरणीय रविकर जी सादर, मगर मेरी शंकाएं विश्वास में बदल रही है की वह नर हैं ही नहीं.
नर है बस पुरुषार्थ ही, कहो न नारि नरेश,
नरदारा भी क्यों कहो, नर जब बचा न शेष |
नर जब बचा न शेष, भरी पशुता बस उर में,
कानन से ये नगर, पाशविकता घर-घर में,
कुत्ते दुष्ट सियार, हुआ जीना दूभर है,
करते पशु से कृत्य, कहें कैसे यह नर है ||
बहुत सुन्दर लिखा है अपने हार्दिक बधाई आदरणीय/////////
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए .............. |
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