For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आनंद प्राप्ति में भटकाव

आनंद व्यापक होता है
सारा संसार आनंद की खोज में मशगुल है. इस खोज में कोई किसी से पीछे नहीं रहना चाहता है. रहे भी क्यों ? सभी जीवो को आनंद चाहिए क्योंकि यही उसके जीवन का उद्देश्य है.

आनंद की खोज ही मनुष्य का धर्मं है. आनंद की प्राप्ति ही मनुष्य चरम एवं परम उद्देश्य है. अपने इस प्रिय और परम प्रिय आनंद की प्राप्ति के लिए ही मनुष्य आदिकाल से सतत संघर्ष करता आ रहा है.

अनंत कल का यह पथिक अनंत पथ पर चला जा रहा हा इ. हर दिन हर समय सोचता है अब अंत करीब है . लेकिन यह क्षितिज मृग मरीचिका साबित होती है. यह मिलन की घडी सुदूर आकाश के नीलिमा में समाई हुई क्षितिज में परिणत हो जाती है. और मनुष्य वही रह जाता है जहा से चला था. इस खेल में संसार के जो लोग अहम् भूमिका निभा गए वे आज पूजे जाते है. उन्हें भगवान की संज्ञा दी गयी. लेकिन मनुष्य की खोज का कोई सीमा निर्धारित नहीं हो सका और न ही किसी ने विराम लगाने में सफलता पी.

मनुष्य एक कदम दो कदम बढ़ता गया . कदम ताल करता गया लेकिन उसकी नियत योजना आजतक ज्यो की त्यों धरी पड़ी है.

विकास तो मनुष्य ने बहुत किया लेकिन एक मानव समाज नहीं बना पाया. अपनी ढफली अपना राग आज भी अलापा जा रहा है.

पूर्व में मनुष्य विभिन्न गोस्ठियो में रहता था और आज भी वही स्थिति है. बदलाव केवल नामकरण में हुआ है. आज दल बन गया है, हजारो जातियां बन गयी है , भगवaन से भेट करने वालो की आलिशान दुकाने खुल गयी, शाशन के नाम पर रंग विरंगे कल सर्प का झंडा फहराने लगा है. कितनी ममतामयी है मानवीय सभ्यता. चू नहीं करती. भोली भली गे के सामान प्रजातंत्र के बधशाला में चुपचाप चली जाती है. यही उसके जीवन की नियति बन गयी है.

जीवन उस ज्वालामुखी में समां जाता है जहाँ केवल मौत का इंतजार होता है और उसकी खोज उसी में विलीन हो जाती है. फिर जब उसका जन्म होता है वह पुनः उस यात्रा को जारी
करता है आगे बढ़ता है , आगे बढ़ रहा है और आज भी आगे बढ़ रहा है. रुकने का नाम नहीं लेता . क्योकि रुकना तो मौत है. जीवन का श्मशान है. चलते रहने के कारन ही तो मनुष्य सिद्धियों का अम्बार लगा पाया है. सफलता में कही कोई कमी नहीं लेकिन एक समाज नहीं बना पाया है.

समाज का अर्थ होता है जहा समानता है. समानं एजति इति समाजः. जहाँ कोई भेद नहीं हो सभी अपने हो. कानून हक़ हो अपनापन का. पर इस संसार में केवल गुटबाजी है - धर्मं के नाम पर, जाति के नाम पर, संस्था के नाम पर, पार्टी के नाम पर , एक गिरोह कार्य कर रहा है. उससे तबतक सम्बन्ध चलता है, जबतक स्वार्थ की पूर्ति होती रहती है लेकिन जैसे ही काम समाप्त होता है वह भी जीवन से अलग - थलग पड़ जाता है. इन सबके पीछे जो सबसे बड़ा कारन है वह है भूमासत्ता से अपने को दूर रखना.

मनुष्य का जीवन ईश्वरीय उपहार है . इसे मनुष्य अपनी बपौती संपत्ति समझ बैठता है जो मनुष्य की भरी भूल है और इस समझ के कारण उसे भारी कीमत चुकानी पड़ती है. इसलिए मनुष्य का कर्त्तव्य है की वह संसार को ईश्वरमय देखे. ऐसा करने पर वह स्वयं भी महान हो जायेगा तथा उसके जीवन का उद्देश्य भी पूरा हो जायेगा.

मनुष्य जब एक दूसरे को मेहँदी बाटने लगे तब उसे स्वयं को मेहँदी लगाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. उसका जीवन धन्य हो उठेगा. क्योंकि उसके शारीर से, मन - प्राण से कुसंस्कार समाप्त हो गए होते है. उसके पास केवल उत्तम , स्वछ, निर्मल तत्त्व सक्रिय हो जाते है. उसके खजाने में आनंद का खजाना भर जाता है. वह तब जीव से शिव बन जाता है. जीव को शिव बनाना ही उद्देश्य है ग्राफो योग का. मनुष्य अनंत सुख का भागी बने. मनुष्य अपने समाज में रहे .

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा): "हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह…"
2 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आपका हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी।"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"आ. भाई मनन जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"ध्वनि लोग उसे  पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर  इशारे करता।जींस,असबाब…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-120
"स्वागतम"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. रिचा जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-177
"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service