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कृत्य हमरा महत्व कम रखता

कृत्य हमरा महत्व कम रखता
(मधु गीति सं. १५२० दि. १७ नवम्बर, २०१०)

कृत्य हमरा महत्व कम रखता, स्वत्व हमरा जगत कृति करता;
अर्थ यदि अपना हम समझ पायें, स्वार्थ परमार्थ कर स्वत्व पायें.

कर्म उत्तम तभी है हो पाये, आत्म जब सूक्ष्म हमरा हो जाये;
ध्यान बिन स्वार्थ ना समझ आये, स्वार्थ बिन खोजे अर्थ न आये.
नहीं आनन्द यदि रहे उर में, दे कहाँ पांए उसे इस जग में;
रहें दुःख में तो कैसे सुख देवें, बिना खुद जाने खुदा क्या जानें.

समझना स्वयं का जरुरी है, स्वार्थ का अर्थ स्वतः सेवी है;
अहं जब बृह्म में है मिल जाता, स्वार्थ परमार्थ बन प्रकट होता.
कृत्य हमरे सुकृत्य तब होते, नर्क में भी हैं स्वर्ग हम रचते;
स्वार्थ हमरा है विश्वमय होता, 'मधु' का कृत्य तब महत होता.

रचयिता: गोपाल बघेल 'मधु'
टोरोंटो, ओंटारियो, कनाडा

www.GopalBaghelMadhu.com

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