बाल सभी झड़ गये,बुढ्ढा अब दिखता हूँ !
हमउम्र औरतें भी,चाचा कह देती हैं !!
पत्नी भी मारे है ताना,भाग्य मेरे फूट गये !
कभी कभी वो भी मुझे,बुढ्ढा कह देती है !!
अपने ही जब कभी,अपना मज़ाक ले लें !
किससे कहूँ कितनी,पीड़ा मुझे होती है
छुपते छुपाते कभी,दर्पण में देखूं जब !
पत्नी देख मुझे फिर,हा हा हँस देती है !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
hardik aabhar adarneeya coontee ji///
hardik aabhar bhai Jitendra Pastariya ji////
hardik aabhar bhai yatindra pandey ji////
hardik aabhar adarneeyaa kalpana ji/////
hardik aabhar bhai brijesh ji////uda lijiye mazak ///mere bhi din aayenge///ha ha ha pahle apke hi baal girenge
hardik aabhar adarneey ganesh ji///aap ke sujhav par kuchh idhar udhar karke dekhata hun//saadar
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
राम जी सुन्दर भाव पूर्ण घनाक्षरी के लिए बहुत बधाई किन्तु यह अशुद्ध छन्द है.....आपको परामर्श है की इसे पूर्णतः खारिज कर दें और पुनः लिखें तुकान्त दोष है उत्तम माध्यम और अधम तुकान्तों में से किसी एक का भी पालन नहीं किया है आपने.......शुभकामनाएं
ganje ko dekhte hi chacha ki ati hai yad ,
isiliye shayad sabhi kah dete chacha shayad .
भैया , घनाक्षरी बहुत सुंदर लिखी है ........पर....यह गंजों के घाव पर मलहम है या नमक .....! !
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