हे मन.....
तोङ दे सारे बन्धन.
तोङ दे सारे घमन्ड,छोङ दे मद़पाना हॆ तुझे अमरत्व का पद
चलना हॆ तुझे सदॆव. सतत
रहना हॆ सदा संघर्षमय प्रयासरत.
अगर तुम्हे बाँधगया कोई मायाजाल
तो कॆसे पाओगे वह शिखर विशाल
जिसके लिये तुम हो सदा से अधीर
फिर बार बार नही मिलेगा तुम्हे नश्वर शरीर
चलते ही रहना हॆ तुम्हे कंटकों पर शूलों पर
गूँजे तुम्हारी कृतियों से अवनि ऒर अम्बर
इसके लिये जलाना होगा लहू की हर धार
चूकना मत यदि न्योछावर करना पङे स्वप्राण भी बार बार.
उपवन तुम्हे कम मिलेंगे पतझङ अधिक
हे दूर देश के पथिक.
फिर भी तुम्हे पानी हॆ मंजिल
तो जोङो परम परमात्मा से दिल
तोङो जग से नाता मोङो अपना जीवन.. .
हे मन.. तोङ दे सारे बन्धन..
तोङ दे सारे बन्धन.......
पंकज.
Comment
भाई पंकज जी, विशेष मनोदशा और मनोस्थिति की रचना के लिए हा्दिक धन्यवाद
शुभेच्छाएँ
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