माँ ने जो बेशुमार प्यार दिया,
पिता ने चुपचाप दुलार किया !
ऊँगली पकड़ जो चलना सिखाया,
तुतलाते बोलों ने अर्थ आपसे पाया !
पिता की डांट में छुपा था प्यार ,
जिसका न हो पाया कभी इजहार !
अन्दर से नरम और ऊपर से कठोर ,
अकेले बैठ हमेशा ही हुए भावविभोर !
बेटे बेटी का न कभी किया अंतर ,
चलते ही रहे बिना थके आप निरंतर !
माँ के माथे की बिंदिया का थे विश्वास ,
साथ हमेशा होने का दिलाया अहसास !
जब था अनजान सब दुनिया का नजारा ,
पिता के कन्धों पर बैठ देखा जग सारा !
जिंदगी के सफ़र का जब आपने विश्राम पाया ,
हमने कन्धों पर आपको मोक्षद्वार पहुँचाया !
पिता की छांव ने सिखाया खिलखिलाना ,
'सरिता' निरंतर बहना न व्यर्थ आँसू बहाना !!
.........................................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सरिता जी ....बहुत सुंदर रचना ............बधाई स्वीकार करेँ
आ0 सरिता जी, अतिसुन्दर रचना, बधाई स्वीकारें। सादर,
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online