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चूल्हा चौंका झाड़ू बरतन,
गगरी पनघट औ पानी रॆ !!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,
अम्मा बाबू कॆ बदना की,
मैं किलकारी थी अँगना की,
तुलसी छॊड़ भई सजना की,
रॊटी जलॆ तवा कॆ ऊपर,
ऎसहिँ जलॆ जवानी रॆ !!१!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,
,
वॊ बचपन की सखी-सहॆलीं,
साथ साथ मॆरॆ सब खॆलीं,
अमियाँ इमली गुड़ की डॆली,
भूल गयॆ सब खॆल खिलौनॆ,
भूलीं सब ऋतु मस्तानी रॆ !!२!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,
पढ़ी-लिखी जॊ मैं भी हॊती,
बॆटॊं जैसा सम्मान सँजॊती,
सिसक रसॊई मॆं ना रॊती,
साहब की कुर्सी पर बैठी,
मैं लिखती नई कहानी रॆ !!३!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,
हम कॊ मार रही बॆ-कारी,
ना ही सुविधा है सरकारी,
राशन चाट रहॆ अधिकारी,
जीना दुर्लभ हुआ यहाँ पर,
"राज" करॆ निगरानी रॆ !!४!! हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,,,,
कवि - "राज बुन्दॆली"
१६/०६/२०१३
पूर्णत: मौलिक एवं अप्रकाशित रचना,
Comment
आप के गीत कितनी मासूम कहानी कह गयी...............................
पढ़ी-लिखी जॊ मैं भी हॊती,
बॆटॊं जैसा सम्मान सँजॊती,
सिसक रसॊई मॆं ना रॊती,
साहब की कुर्सी पर बैठी,
मैं लिखती नई कहानी रॆ !!३!!हाय ! मॆरी जिन्दगानी रॆ,
सादर
कुंती
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