शहर के बड़े चैराहे पर
जो बड़ी दीवार है
उसके पास से गुजरते हुए
अक्सर मन होता है
लिख दूं उस पर
‘लोकतंत्र’
लाल स्याही से।
एक बड़ा लाल चमकता हुआ
‘लोकतंत्र’
जो दूर से साफ चमके।
जब भी होता हूं वहां
कांव कांव करता एक कौआ
आ बैठता है दीवार पर
मानो आहवाहन करता हो
‘आंव, आंव
लिख दो इस दीवार पर
जग जाएं पशु, पक्षी, लोग
ढूंढकर निकाली जा सके
फाइलों और योजनाओं के
बोझ तले दबी जनता’।
कभी कभी हाथ उठते भी हैं
लेकिन कायर दिमाग
अनुमति नहीं देता।
दिमाग याद करता है
जब एक कवि ने
कोशिश की थी पहले
‘लोकतंत्र’ लिखने की
इसी दीवार पर।
अभी लिख ही पाया था ‘ल’
कि मिटा दी गयी इबारत
पोत दी गयी दीवार
झक सफेद रंग से।
वह कवि
तब से गायब है।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीया कुंती जी आपकी विस्तृत टिप्पणी ने साहस बढ़ाया। आपके शब्दों से लगा कि मेरा प्रयास कुछ सफल हुआ।
आपका हार्दिक आभार!
सादर!
आपकी रचना की लय पर थिरखती आखें जब अचानक विराम पाकर रुकती है तो दिमाग कुछ पल के लिये रुक जाता है और दिल सोचने पर मजबूर हो जाता है कि वक्त के गर्त में न जाने कितनी ऐसी आवाज़ें दफ़न है जो उठने से पहले ही दबा दी गयी है........कवि की क्रांतिकारी दिमाग कभी चुप बैठने वाला नहीं है.
वाक्य विन्यास व शैली का क्रम लय में कोई बाधक नहीं.
ठांव ठांव ...आंव आंव जैसे युग्म शब्द इस रचना में जान फूक दी है.
भाव और रचना का उद्देश्य स्पष्ट है.
कवि की क्रांतिकारी हृदय को सार्थक करता है.
कुल मिलाकर एक स्वस्थ व सफ़ल प्रस्तुति.
सादर
कुंती.
आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय भाई ब्रिजेश जी बहुत ही सत्य व् सटीक बात कही है आपने/
/हार्दिक बधाई आपको ///बहुत ही सुन्दर रचना //सादर////
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपका हार्दिक आभार!
आपका आशीष मेरे लिए वरदान सरीखा है।
सादर!
ब्रजेश जी यहाँ हर कोई अकेला चना है ,क्यों की संगठन भी विफल होते देखे गए हैं कैसे सामना करेगा भ्रष्ट शासन तंत्र का ? अच्छा कटाक्ष किया है आक्रोशित मन से निकले भाव बहुत बढ़िया बधाई
आदरणीय निकोर साहब आपका हार्दिक आभार! आपका आशीष मुझे सदैव बल प्रदान करता है।
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार! आप जैसा पाठक ही हम जैसों को हौसला प्रदान करता है।
सादर!
आदरणीय लाडलीवाल जी आपका हार्दिक आभार! आपकी कुण्डलियां बहुत सुन्दर हैं।
सादर!
आदरणीय बसंत जी आपका हार्दिक आभार!
आपसे एक निवेदन कि कृपया सर सम्बोधन न प्रयोग किया करें मेरे लिए। मैं बहुत छोटा आदमी हूॅं और ब्रिटेन की सरकार ऐसे छोटे मोटे लोगों को यह पदवी नहीं देती। :))))))))))))
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