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आज फिर हमने पी रखी साहिब

जो नजर है कमाल की साहिब

वो नजर क्यूँ झुकी हुई साहिब

.

आज फिर दिल मेरा बेचैन सा है

आज फिर हमने पी रखी साहिब

.

जुल्फ की छाँव तले गुजरे दो पल

दो घड़ी ज़िंदगी ये जी साहिब

.

मरने में आएगा मज़ा हमको

क़त्ल कर दे हंसी नजर  साहिब

.

जाम हाथों में इक बहाना है

हम कहाँ करते मयकशी साहिब

.

मैं नहीं बज्म में कभी आया

बात उसको ये खल गयी साहिब

.

डूब जायेंगे हम समंदर में

हो समंदर जो आँख में साहिब

.

देख कर जलवे नाजनीनों के

है खबर आशु मिट गया साहिब

मौलिक व अप्रकाशित

 

 

डॉ आशुतोष मिश्र , निदेशक ,आचार्य नरेन्द्र देव कॉलेज ऑफ़ फार्मेसी बभनान,गोंडा, उत्तरप्रदेश मो० ९८३९१६७८०१

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Comment by वीनस केसरी on July 15, 2013 at 12:06am

आशुतोष जी ग़ज़ल पर सुन्दर प्रयास है
हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by बृजेश नीरज on July 12, 2013 at 4:54pm

आदरणीय इस सुन्दर प्रयास के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by अरुन 'अनन्त' on July 12, 2013 at 11:39am

बहुत खूब आदरणीय यदि बहर बता देते तो कुछ कहने में सहजता होती बहरहाल प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

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