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कुण्डलिया [सावन]

सावन आया झूम के,देखो लाया तीज

रंगबिरंगी ओढ़नी, पहन रही है रीझ

पहन रही है रीझ, हार कंगन झाँझरिया

जुत्ती तिल्लेदार, आज लाये साँवरिया

उड़ती जाय पतंग, लगे अम्बर मनभावन

झूलें मिलकर पींग, झूम के आया सावन

............................

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by annapurna bajpai on July 19, 2013 at 1:15pm

adarniya sarita ji sawan ki ras madhuri me man prafullit ho chala . bahut abhar

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 18, 2013 at 6:12pm

आपकी कुंडली रचना पढ़ के,बचपन में पढ़ी ये पंक्तियाँ सहसा याद हो आई

"आया सावन झूम के,धरती माँ को चूम के"

सावन की कुंडलियो पर बहुत बहुत बधाई..आदरणीया..सरिता जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 18, 2013 at 5:47pm

आदरणीया सरिता जी बहुत सुन्दर प्रयास 

सावन की मनभावन कुंडलिया के लिए बधाई 

Comment by Shyam Narain Verma on July 18, 2013 at 3:34pm

बहुत सुन्दर ,ढेरों बधाई .................

Comment by बृजेश नीरज on July 18, 2013 at 1:51pm

वाह! बहुत सुन्दर! आदरणीया सरिता जी आपका श्रम रंग ला रहा है। आपको ढेरों बधाई!

Comment by coontee mukerji on July 18, 2013 at 12:59pm

सावन के नाम से  ही मन झूम जाता है.सरिता जी आपने अपनी प्रस्तुति में इतनी कंचूसी क्यों की है.........जरा खुलके पींग मारे तो सावन में झूलने  का आनंद आए.

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