सावन आया झूम के,देखो लाया तीज
रंगबिरंगी ओढ़नी, पहन रही है रीझ
पहन रही है रीझ, हार कंगन झाँझरिया
जुत्ती तिल्लेदार, आज लाये साँवरिया
उड़ती जाय पतंग, लगे अम्बर मनभावन
झूलें मिलकर पींग, झूम के आया सावन
............................
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
adarniya sarita ji sawan ki ras madhuri me man prafullit ho chala . bahut abhar
आपकी कुंडली रचना पढ़ के,बचपन में पढ़ी ये पंक्तियाँ सहसा याद हो आई
"आया सावन झूम के,धरती माँ को चूम के"
सावन की कुंडलियो पर बहुत बहुत बधाई..आदरणीया..सरिता जी
आदरणीया सरिता जी बहुत सुन्दर प्रयास
सावन की मनभावन कुंडलिया के लिए बधाई
बहुत सुन्दर ,ढेरों बधाई .................
वाह! बहुत सुन्दर! आदरणीया सरिता जी आपका श्रम रंग ला रहा है। आपको ढेरों बधाई!
सावन के नाम से ही मन झूम जाता है.सरिता जी आपने अपनी प्रस्तुति में इतनी कंचूसी क्यों की है.........जरा खुलके पींग मारे तो सावन में झूलने का आनंद आए.
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