अबला नारी को कहें, उनको मूर्ख जान |
नारी से है जग बढ़ा ,नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,नारी बनेगी सबला |
नर जो ना दे घाव ,तो क्यों रहे वह अबला||
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मौलिक व अप्रकाशित
Comment
जी आदरणीय सौरभ जी नमस्कार ,आप सभी अग्रजों के सुझाव सर आँखों पर
प्रयास जारी है
प्रयासरत रहें, आदरणीया. साथ ही छंदों के विधान के प्रति सचेत रहें. आदरणीय रविकर जी और आदरणीय अशोक भाईजी के सुझाव समीचीन हैं.
सादर
आदरणीया सरिता जी साहित्य कर्म में आपके गंभीर प्रयास आपकी रचना में झलकते हैं। मुझे विश्वास है कि जल्द ही आप सभी छंदों में महारथ हासिल करने वाली हैं।
इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
आदरणीय अशोक जी तह दिल से शुक्रिया
आदरणीया सरिता जी सादर, यह कुण्डलिया छंद आपने बहुत अच्छा रचा है. बहुत बहुत बधाई स्वीकारें. कुछ सुधार आदरणीय रविकर जी ने किया है.उससे शिल्प दोष और प्रवाह दोनों सुधरे हैं. मुझे लगता है अंतिम दोनों पदों में भी शब्द संयोजन में बदलाव होना चाहिए.
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
पाकर अनुपम स्नेह ,बनेगी नारी सबला |
नर जो ना दे घाव ,रहे कैसे वह अबला||
अरे गुरुदेव ऐसा मत कहिए ,मुझे बेझिझक आप गलती बता सकते हैं ,आपका कोई सानी नहीं कुण्डलिया में
दूसरी बात मुझे सीखने का बहुत शौक है कोई भी गलती समझाता है तो उसका बुरा नहीं लगता ,मेरी ज्यादा पूछताश से किसी को बुरा ना लगे ,कोई उसका गलत मतलब ना निकाले बस यही ध्यान रखती हूँ | सुधार करे देती हूँ
थोडा सा परिवर्तन करने की गुस्ताखी की है आदरेया-
क्षमा करें-
अबला नारी जो कहे, उसको मूरख जान |
नारी से है जग बढ़ा , नारी नर की खान ||
नारी नर की खान , प्यार बलिदान दिया है |
नारी नहिं असहाय , मर्म ने विवश किया है
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