बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |
धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम||
भर भर घट के जाम ,हो रही धरा है तृप्त |
पानी हुआ तुषार, हो रही ग्रीष्म है लुप्त ||
लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |
बच्चे ख़ुशी मनात , मेघा ले आय बरखा ||
|............................|
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय प्राची जी
आपने उदारहण सहित इतने अच्छे तरीके से सब तथ्य सामने रखे हैं कि ना समझ आने वाली कोई बात रही हि नहीं
मैंने जो उदाहरण आपके सामने रखे निश्चय हि वोह कुण्डलिया के माहिर हैं ,इसीलिए उत्सुकतावश उन्ही की कुण्डलिया उठाकर आपके सामने रखी |
एक बार पुनः आदरणीय सौरभ पांडे जी का और डॉ प्राची का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ |
आदरणीया डॉ प्राची जी, द्वारा दिए गये सुझावों पर अमल करें आदरणीया
सादर शुभकामनाएँ
सादर धन्यवाद आदरणीया
आदरणीय सौरभ जी ,
आपके इंगित की गंभीरता को समझते हुए, विवादास्पद पद्यांशों के स्थान पर विधासम्मत पद्याश को प्रतिस्थापित कर दिया गया है.
सादर.
बहुत सार्थक परिचर्चा के लिए धन्यवाद.
डॉ. प्राची ने आदरणीया सरिता जी के संदेह को सार्थक ढंग से दूर करने का प्रयास किया है.
डॉ. प्राची से सादर अनुरोध है कि विधा को स्पष्ट तथा स्थापित करने के क्रम में विवादित पद्यांशों को परे रखें. सटीक उदाहरणॊं की कहीं कोई कमी नहीं है. अन्यथा आपके उदाहरण अन्यथा विवादों को जन्म दे सकते हैं. और फिर.. खैर..
सादर
आ० सरिता जी आपकी जिज्ञासा का स्वागत है...
अभी के लिए मैं मैं सिर्फ रोला भाग के सम चरण के अंत पर ही मात्रा गणना पर चर्चा को केंद्रित करती हूँ..
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से । .............११२
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से । .........११२
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।............... २११
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥..........२११.
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।........२११
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।............२११
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।..........११२
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।..........११२
इन सभी पंक्तियों में अंत में इस प्रकार के शब्द हैं जिनका अंत गुरु की तरह उच्चारित किया जा सकता है...दो लघु ११ भी मिल कर गुरु का आभास देते हैं .
रोला छंद के नियम पर मैं बस इतना ही कहूंगी:
आमतौर पर रोले की प्रत्येक पंक्ति के मध्य में ११ मात्रा की यति पर प्रायः गुरु लघु [२१] या लघु लघु लघु [१११] तथा पंक्ति के अंत में गुरु गुरु[२२] / लघु लघु गुरु [११२] या लघु लघु लघु लघु [११११] का उपयोग किया जाता रहा है ! तथापि मेरे विचार में इसके अंत में दो गुरु होना ही श्रेयस्कर है |
उदाहरण स्वरुप ओबीओ 'चित्र से काव्य प्रतियोगता जुलाई २०१२' में प्रथम पुरूस्कार से पुरुस्कृत मेरे द्वारा ही रचित एक कुंडलिया देखिये :
सावन झूमे सोहनी , मस्ती में महिवाल,
झूले की पींगें चढीं , ओढ़ चुनरिया लाल,...
ओढ़ चुनरिया लाल, पहिन घाघर जयपुरिया,.............अंत ११२
झांझर, कंगन, हार, जुत्ती है अमृतसरिया,..................११२
भिजवाया शृंगार, बहुत रसिया हैं साजन,.....................२११
रंग ले गयीं साथ, कहें मुझसे इस सावन .....................२११
लेकिन किसी भी तरह से अंत में २१२ या १२१ नहीं लिया जा सकता...जैसी की तृप्त (२१) और लुप्त (२१) में हैं
उम्मीद है आपको यह तथ्य अब स्पष्ट हो गया होगा.
//बाकि जो आपने सुधार किये निश्चय हि बेहतर हैं ,पर मैं इसका प्रयोग कर सकती हूँ या नहीं कृपया मार्गदर्शन करें //
आपकी ही कुंडलिया है.....सुझावों को अमल में लाइए, और अपनी रचनाओं को सुगढ़ता प्रदान कीजिये.....बिलकुल बेझिझक प्रयोग कर सकती हैं.
आपके हर संशय का सहर्ष स्वागत है..
सस्नेह
आदरणीय प्राची जी
यह भी देखिए
रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह ।
सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह ।
बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से ।
कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से ।
करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।
कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥
आदरणीय प्राची जी
जैसा कि मुझे कहा गया था की कभी हम इसका प्रयोग कर भी सकते है
इसमें भी रोला के सम चरण का अंत कैसे किया है कृपया समझाएं
छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |
नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।
नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।
यह गुरुवर रविकर sir की कुंडलिया है
बाकि जो आपने सुधार किये निश्चय हि बेहतर हैं ,पर मैं इसका प्रयोग कर सकती हूँ या नहीं कृपया मार्गदर्शन करें
आदरणीया सरिता जी, आपका प्रयास रंग ला रहा है जमे रहें. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया सरिता जी सादर, बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है कुण्डलिया छंद पर.रचना देखकर ज्ञात होता है की बहुत कुछ जानकारी आपके पास है बाकी आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी ने दी ही है. सतत प्रयास करें. बहुत बहुत बधाई.
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