For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुण्डलिया छंद

बरखा रानी आ गई ,लेकर बदरा श्याम |

धरा आज है पी रही ,भर भर घट के जाम|| 

भर भर घट के जाम ,हो रही धरा है तृप्त |

पानी हुआ तुषार, हो रही ग्रीष्म है लुप्त ||

लोग हुए खुशहाल ,चला जीवन का चरखा |

बच्चे  ख़ुशी मनात , मेघा ले आय बरखा ||

|............................|

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 961

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sarita Bhatia on July 12, 2013 at 5:52pm

आदरणीय प्राची जी 

आपने उदारहण सहित इतने अच्छे तरीके से सब तथ्य सामने रखे हैं कि ना समझ आने वाली कोई बात रही हि नहीं 

मैंने जो उदाहरण आपके सामने रखे निश्चय हि वोह कुण्डलिया के माहिर हैं ,इसीलिए उत्सुकतावश उन्ही की कुण्डलिया उठाकर आपके सामने रखी |

एक बार पुनः आदरणीय सौरभ पांडे जी का और डॉ प्राची का हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ |

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on July 11, 2013 at 4:49pm

आदरणीया डॉ प्राची जी, द्वारा दिए गये सुझावों पर अमल करें आदरणीया
सादर शुभकामनाएँ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 4:44pm

सादर धन्यवाद आदरणीया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 11, 2013 at 4:01pm

आदरणीय सौरभ जी ,

आपके इंगित की गंभीरता को समझते हुए, विवादास्पद पद्यांशों के स्थान पर विधासम्मत पद्याश को प्रतिस्थापित कर दिया गया है.

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 11, 2013 at 3:03pm

बहुत सार्थक परिचर्चा के लिए धन्यवाद.  

डॉ. प्राची ने आदरणीया सरिता जी के संदेह को सार्थक ढंग से दूर करने का प्रयास किया है.

डॉ. प्राची से सादर अनुरोध है कि विधा को स्पष्ट तथा स्थापित करने के क्रम में विवादित पद्यांशों को परे रखें.  सटीक उदाहरणॊं की कहीं कोई कमी नहीं है.   अन्यथा आपके उदाहरण अन्यथा विवादों को जन्म दे सकते हैं.  और फिर.. खैर..

सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 11, 2013 at 1:01pm

आ० सरिता जी आपकी जिज्ञासा का स्वागत है...

अभी के लिए मैं मैं सिर्फ रोला भाग के सम चरण के अंत पर ही मात्रा गणना पर चर्चा को केंद्रित करती हूँ..

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से । .............११२

कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से । .........११२ 

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।............... २११ 

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥..........२११.

नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।........२११ 

बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।............२११

नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।..........११२

फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।..........११२ 

 

इन सभी पंक्तियों में अंत में इस प्रकार के शब्द हैं जिनका अंत गुरु की तरह उच्चारित किया जा सकता है...दो लघु ११ भी मिल कर गुरु का आभास देते हैं .

रोला छंद के नियम पर मैं बस इतना ही कहूंगी: 

आमतौर पर रोले की प्रत्येक पंक्ति के मध्य में ११ मात्रा की यति पर प्रायः गुरु लघु [२१] या लघु लघु लघु [१११] तथा पंक्ति के अंत में गुरु गुरु[२२] / लघु लघु गुरु [११२] या लघु लघु लघु लघु [११११] का उपयोग किया जाता रहा है ! तथापि मेरे विचार में इसके अंत में दो गुरु होना ही श्रेयस्कर है |

उदाहरण स्वरुप ओबीओ 'चित्र से काव्य प्रतियोगता जुलाई २०१२' में प्रथम पुरूस्कार से  पुरुस्कृत मेरे द्वारा ही रचित एक कुंडलिया देखिये : 

सावन झूमे सोहनी , मस्ती में महिवाल,

झूले की पींगें चढीं , ओढ़ चुनरिया लाल,...          

ओढ़ चुनरिया लाल, पहिन घाघर जयपुरिया,.............अंत ११२ 

झांझर, कंगन, हार, जुत्ती है अमृतसरिया,..................११२ 

भिजवाया शृंगार, बहुत रसिया हैं साजन,.....................२११ 

रंग ले गयीं साथ, कहें मुझसे इस सावन .....................२११ 

लेकिन किसी भी तरह से अंत में २१२ या १२१ नहीं लिया जा सकता...जैसी की तृप्त (२१) और लुप्त (२१) में हैं 

उम्मीद है आपको यह तथ्य अब स्पष्ट हो गया होगा.

//बाकि जो आपने सुधार  किये निश्चय हि बेहतर हैं ,पर मैं इसका प्रयोग कर सकती हूँ या नहीं कृपया मार्गदर्शन करें //

आपकी ही कुंडलिया है.....सुझावों को अमल में लाइए, और अपनी रचनाओं को सुगढ़ता प्रदान कीजिये.....बिलकुल बेझिझक प्रयोग कर सकती हैं. 

आपके हर संशय का सहर्ष स्वागत है..

सस्नेह 

Comment by Sarita Bhatia on July 11, 2013 at 11:47am

आदरणीय प्राची जी 

यह भी देखिए 

रथ-वाहन हन हन बहे, बहे वेग से देह । 

सड़क मार्ग अवरुद्ध कुल, बरसी घातक मेह । 

बरसी घातक मेह, अवतरण गंगा फिर से । 

कंकड़ मलबा संग, हिले नहिं शिव मंदिर से । 

 करें नहीं विषपान, देखते मरता तीरथ ।

कैसे होंय प्रसन्न, सन्न हैं भक्त भगीरथ ॥

Comment by Sarita Bhatia on July 11, 2013 at 11:43am

आदरणीय प्राची जी 

जैसा कि मुझे कहा गया था की कभी हम इसका प्रयोग कर भी सकते है 

इसमें भी रोला के सम  चरण का अंत कैसे  किया है कृपया समझाएं

छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।

नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |

नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।

बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।

नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली ।

फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।

यह गुरुवर रविकर sir की कुंडलिया  है 

बाकि जो आपने सुधार  किये निश्चय हि बेहतर हैं ,पर मैं इसका प्रयोग कर सकती हूँ या नहीं कृपया मार्गदर्शन करें 

 

 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on July 10, 2013 at 8:10pm

आदरणीया सरिता जी, आपका प्रयास रंग ला रहा है जमे रहें. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on July 10, 2013 at 7:24pm

आदरणीया सरिता जी सादर, बहुत सुन्दर प्रयास हुआ है कुण्डलिया छंद पर.रचना देखकर ज्ञात होता है की बहुत कुछ जानकारी आपके पास है बाकी आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी ने दी ही है. सतत प्रयास करें. बहुत बहुत बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service