औरत
मैंने
औरत बन जन्म लिया
हाँ मैं हूँ
एक औरत
और औरत ही
बनी रहना चाहती हूँ
क्यूंकि
मैं इक बेटी हूँ
मैं इक बहन हूँ
मैं इक पत्नी हूँ
सर्वोपरि इक माँ हूँ
मैं इक पूरी कौम हूँ
एवं
इनसे जुडे हर रिश्ते
की बिन्दू हूँ मैं
वो सभी घूमते रहते हैं
मेरे चारों ओर
एक वृत्त की तरह
और मैं
चाहे नाचाहे
जाने अनजाने
जुड़ जाती हूँ
इन सबसे
एक सीधी सरल रेखा से
सरल रेखा
जो वृत्त के हर एक बिन्दू को
समेट लेती है अपने में
इसलिए मैं बिन्दू हूँ
और बिन्दू ही बनी
रहना चाहती हूँ
क्योंकि
बिन्दू ही है
औरत रूपी धूरी
जो है सारे वृतों का समास
जिसमे समाया है
पूर्ण तुष्टि का आभास
विजयाश्री
१८.०७.२०१३
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति.......एक नारी जीवन की सार्थकता प्रदान करती है.
आदरणीया ,
बहुत ही अच्छी रचना |
सुंदर लेखन |
"क्यूंकि
मैं इक बेटी हूँ
मैं इक बहन हूँ
मैं इक पत्नी हूँ
सर्वोपरि इक माँ हूँ
मैं इक पूरी कौम हूँ..." अपनी रचना में आपने, मानव जीवन में औरत के होने का बखूबी चित्रण किया ! सच..मानव जीवन में.. ,बेटी, बहन, पत्नी और माँ का होना बहुत आवश्यक है! ...आदरणीया विजया जी, सरल सुंदर रचना पर हार्दिक बधाई..
अच्छी रचना है।
बधाई आदरणीया विजया जी!!
अच्छी रचना है आपकी। बधाई आपको।
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