ख्वाबों की परिधि मे
आलते का इकरार सुनाई देता है
मौन रहती उस मृगनयनी के
आँखों से झंकार सुनाई देता है
कोतूहल के इस कोहरे मे
कस्तुरी संस्कार सुनाई देता है
सम्बोधन के अरुनिम मे
रुनझुन करता गान सुनाई देता है
हृदय के स्निग्ध लबों से
तरुवर का व्याख्यान सुनाई देता है
कोकिला के कुहुक मे
सम्बन्धों मे आन सुनाई देता है
बच्चे की किलकारी मे
माँ के गर्वित मन का भान सुनाई देता है
शिक्षक के सहपाठी बनने मे
विस्तृत होता ज्ञान सुनाई देता है
ख्वाबों की परिधि मे
स-हृदय आख्यान सुनाई देता है
भोर की सुगंधित शालीनता मे
सूरज की शीतलता का तान सुनाई देता है
हरित दूब की कोमलता मे
ॐ से रिसता रिमझिम प्राण सुनाई देता है
"मौलिक व अप्रकाशित"
गुनेश्वर
Comment
आपकी कोई पहली रचना देख रहा हूँ. आपकी कहन इस तथ्य के प्रति आश्वस्त करती है कि आपसे अपेक्षा करना गलत न होगा.
शुभेच्छाँएँ
आ0 भुवनेश्वर भाई जी, सादर प्रणाम! स्नेह और धर्म रक्षार्थ रक्षाबंधन के पावन पर्व पर आपको सकुटुम्ब हार्दिक शुभकामनाएं। वाह! बहुत सुन्दर भाव में अद्भुत ख्वाबो की परिधि को उकेरा है। आप बधाई के पात्र हैं आप......किन्तु आपकी कविता में कुछ अधूरापन झलक रहा है...इस कविता से कोई स्पष्ट संदेश नहीं मिला ....। कृपया इसे अन्यथा न लें। विचार अवश्य करें। शुभ-शुभ... सादर,
उमेश कटारा दिली धन्यवाद भाई जी
जितेन्द्र गीत जी , अदित्या कुमार जी , सुमित नाइथनी जी , गिरिराज भण्डारी जी , डीपी माथुर जी , अन्नपूर्णा बाजपई जी आब सभी मेरी रचना पढ़ी और दिल सराहा इस के लिए आप सभी को दिल से और स-आदर धन्यवाद
आदरणीय गुनेश्वर जी, बड़ी सुंदर व् प्रभावशाली रचना पर, हार्दिक बधाई
हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय भाई L Guneshwar Rao जी बेहतरीन रचना के लिए
baut hi sunder
अति सुन्दर रचना , गुनेश्वर जी बधाई !!
भोर की सुगंधित शालीनता मे
सूरज की शीतलता का तान सुनाई देता है
हरित दूब की कोमलता मे
ॐ से रिसता रिमझिम प्राण सुनाई देता है
सुन्दर प्रस्तुति की बधाई !
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