मैं तेरा हूँ बस तेरा
तेरे दिल में मेरा बसेरा
मेरे दिल में तेरा ही डेरा
सारी उम्र तू हसीन कर ले
मुझ पर तू यकीन कर ले.....
क्यूँ बार बार दिल तोडती है
इरादों को यूँ मोड़ती है
जब किस्मत हमें जोड़ती है
दूरियों को तू महीन कर ले
मुझ पर तू यकीन कर ले.....
आजा छोटा सा जीवन है
चार दिनों का यौवन है
हर मौसम ही सावन है
खुशी को तू आमीन कर ले
मुझ पर तू यकीन कर ले....
हम दोनों है और कोई नही
कोई तेरा नही कोई मेरा नही
तू जहाँ है मैं हूँ वहीं
आसमां को तू जमीन कर ले
मुझ पर तू यकीन कर ले...
दूरी में हर परेशानी है
ये कैसी बातें ठानी है
हमदोनों ही अभिमानी है
यादों को तू नमकीन कर ले
मुझ पर तू यकीन कर ले....
जितेन्द्र 'गीत'
मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आपका बहुत बहुत आभार , आदरणीया मीना जी
सादर!
आदरणीय श्याम नारायण जी , आपका बहुत बहुत आभार
सादर!
आपकी उत्साह बर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया विनीता जी
सादर!
रचना आपको पसंद आई, लेखनकर्म सार्थक हुआ, स्नेह बनाये रखियेगा राम भाई
सादर!
रचना ने आपका दिल जीत लिया , मेरा सौभाग्य है नीरज भाई, स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
आपकी उत्साहबर्धक प्रतिक्रिया से लेखनकर्म को प्रगति की राह मिलतीहै, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा आदरणीय गिरिराज जी
सादर!
आदरणीय अभिनव अरुण जी, यह आपका बडप्पन है, मेरी लेखनी को आप, गीतिका जी व् ओ बी ओ के समस्त रचनाकरों के मार्गदर्शन, स्नेह व् आशीर्वाद की हमेशा आवश्यकता रहेगी
सादर!
आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया से लेखनकर्म के प्रति मनोबल दूना हो गया व् रचना को सार्थकता का प्रमाण मिला, आपका बहुत बहुत शुक्रिया गीतिका जी
सादर!
बहुत सुन्दर रचना , बधाई
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको! |
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