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माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई

ख़्वाब पूरे हुए आस भी रह गई
जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई

फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं   

माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई 

खैर तेरी खुदा से रही मांगती  

चाह तेरी मुझे ना मिली रह गई 

छोड़ कर तुम भँवर में न होना खफा 

घाव दिल को दिए जो छली रह गई 

आजमाइश तूने की अजब है सबब 

मांगने में कसर जो कहीं रह गई 

प्यार गुल से निभा बुल फिरे पूछती  

आरजू में बता क्या कमी रह गई 

घाव बुल को मिले हो गई अजनबी 

आरजू अब अधूरी पड़ी रह गई 

*******

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on August 25, 2013 at 8:57pm

उम्दा गजल.....खासकर ये शेर खास तरीफ के काबिल बन पड़ा है.....

फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं   

माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2013 at 6:23pm

सरिता जी , सुन्दर रचना , बधाई !

Comment by Meena Pathak on August 24, 2013 at 5:26pm

फ़ौज से लौट कर आ सका वह नहीं
माँग भरकर सुहागन खड़ी रह गई ....... बहुत सुन्दर, बधाई आप को

Comment by Sarita Bhatia on August 24, 2013 at 5:19pm

आदरणीय भाई विजय मिश्र जी हार्दिक आभार 

Comment by Sarita Bhatia on August 24, 2013 at 5:18pm

शुक्रिया अरुण ,स्नेह बनाए  रखें 

Comment by विजय मिश्र on August 24, 2013 at 4:08pm
खूब सुंदर उतरी है ,दिल से दिमाग होती हुई कलम से उभरी है . साधुवाद सरिता बहन .
Comment by अरुन 'अनन्त' on August 24, 2013 at 2:11pm

वाह आदरणीया सरिता जी आपका यह अंदाज बहुत ही अच्छा लगा शानदार रचना हेतु मेरी बधाई स्वीकारें.

Comment by Shyam Narain Verma on August 24, 2013 at 1:03pm
इस प्रस्तुति हेतु बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएँ.
Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 24, 2013 at 11:35am

घाव बुल को मिले हो गई अजनबी 

आरजू अब अधूरी पड़ी रह गई |

 

सुन्दर रचना आदरणीया सरिता जी |

Comment by Sarita Bhatia on August 24, 2013 at 10:19am

आदरणीय अरुण जी तह दिल से शुक्रिया 

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