श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |
श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |
दो दिनों बाद रेखा के मम्मी पापा जाने ही वाले थे , तभी श्रद्धा के घर वालों का फोन आया कि दाह -संस्कार के समय घाट पर श्रद्धा के भाई को भेज दें , ये हमारी इज्जत का सवाल है |
माँ की आँखों के आँशु अपने एकलौते बेटे बहु को देखकर मानो कह रहें हो कि तुमलोगों की इज्जत तो बच गयी पर मेरी श्रद्धा मर गयी |
शुभ्रा शर्मा 'शुभ '
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरणीय शुभ्रा जी , बहुत मार्मिक लघु कथा, वाह !!! आखरी तक पढ़ के बाद सामान्य होने मे वक़्त लग गया !!
उफ्फ!!! आदरणीया कुछ कहने को शब्द नहीं लघुकथा समाप्त होते ही एकाएक आँखें नम हो गईं. आज एक साथ तीन लघुकथा ओ बी ओ पर एक बाद एक पोस्ट हुई हैं और तीनों ही हृदयस्पर्शी हैं आप तीनों को मेरा प्रणाम. आप इस लघुकथा पर हार्दिक बधाई
आदरणीय शुभ्रा जी नमस्कार
कहने को तो आपने लघु कथा लिखी है लेकिन बात इतनी बड़ी कह दी! इसे वक़्त का दोष कहे या बच्चो की समझ का कि वो अपने ही माँ - पापा को समझ पाते! बेहद मार्मिक रचना
आ० शुभ्रा जी बहुत मार्मिक चित्रण । ऐसे भी लोग है जमाने मे । लघु कथा हेतु बधाई ।
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