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Shubhra sharma's Blog (11)

लघुकथा -बहुरूपिया

हनुमान के रूप मे लोगों से भिक्षा माँग गुजर बसर कर रहे बहुरूपिये पर बङे आतंक वादी गिरोह के लिए काम करने वालों की नजर पङी।उनका आदमी बहुरूपिये से गणतंत्र दिवस के अवसर पर परेड स्थल पर कमंडल बम जगह जगह रखकर दहशत फैलाने के लिए सबसे उपयुक्त और सुरक्षित आदमी समझकर एकांत मे डील करने के लिए बात की।

आदमी-बाबा ! आपको केवल दस से पंद्रह जगहों पर कमंडल रखने है , बदले मे इतने पैसे मिलेंगे कि आपको रूप बदलकर भीख माँगने की जरूरत नहीं पङेगी ।

बाबा- (कुछ रूक कर) बेटा ! पेट के लिए गरीबी मे बहुरूपिया बन… Continue

Added by shubhra sharma on January 25, 2014 at 5:23pm — 8 Comments

लघु कथा - लिहाज (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')

राधे श्याम जी पान की दूकान पर हाथ में सिगरेट छुपाये खड़े थे | तभी आठ -नौ साल का लड़का राजा दूकान से गुटखा खरीद खा कर चल दिया |

एक महोदय दुकानदार से -जब अठारह साल से कम उम्र के लोगों को तंबाकू पदार्थ ना देने का बोर्ड लगाये हैं फिर भी आपने क्यों दे दिया ?

दुकानदार -मुझे क्या मालूम की ये अपने लिए ले रहा है या घर के बड़ों के लिए | और यदि जान भी जाएँ कि ये खुद खायेगा तब भी मैं नहीं दूंगा तो किसी और दूकान से ले लेगा , मैं नुकसान में क्यों रहूँ ,खीं -खीं करते हुए बोला…

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Added by shubhra sharma on September 5, 2013 at 12:12pm — 8 Comments

लघुकथा - अनुष्ठान (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')

बहुत उपचार के बाद भी चित्रा की गोद सूनी थी |पूरा परिवार चिंतित रहता था |चित्रा यज्ञं हवन के लिए पति राजेश पर दवाब देती तो नोक-झोक हो जाती थी |राजेश को पूजा पाठ पर विश्वास नहीं था | काफी मेहनत के बाद चित्रा की माँ अपने भगवान् तुल्य गुरूजी मायाराम बाबू से मिली |गुरूजी चित्रा के कुंडली में संतान के घर में अनिष्टकारी ग्रह देख एक ग्रह शांति का ख़ास अनुष्ठान कराने के लिए उनके घर आने को राजी हो गए |चित्रा भी उत्साहित हो गुरूजी की आवभगत की सारी तैयारियाँ कर ली थी | गुरूजी और चित्रा को पूजा…

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Added by shubhra sharma on September 2, 2013 at 12:17pm — 22 Comments

कविता - आरजू



सुहानी सुबह में

खिली थी नन्ही कली

बगिया गुलजार थी

मेरी मौजूदगी से

आने जाने वाले

रोक न पाते खुद को

नाजुक थी कोमल थी

महका करती थी

माली ने सींचा था

खून पसीने से

देखा था सपना

सजोगी कभी आराध्य पर

कभी शहीदों के सीने पर

फूल भी गौरवान्वित थी

अपनी इस कली पर

कर रही थी रक्षा कांटे भी

पते ढक कर सुलाती थी

कली तो अभी कली थी

उसने खुद के लिए कुछ

सोचा भी नहीं था

लापरवाह थी भविष्य से…

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Added by shubhra sharma on August 30, 2013 at 5:30pm — 14 Comments

लघु कथा - इज्जत (शुभ्रा शर्मा 'शुभ ')

श्रवण की बहन श्रद्धा सरकारी अस्पताल में भर्ती थी | विधवा माँ श्रद्धा से मिलने को व्याकुल थी |श्रवण असमंजस में था कि माँ को कैसे रोके | उसके सास ससुर श्रावण पूर्णिमा में गंगा स्नान करने को आ रहे थे |

श्रवण - माँ :तुम जानती हो रेखा कैसे घर से आयी है, उसे काम करने की आदत नहीं है |समय पर खाना ,नाश्ता देने को तो तुम्हे खुद ही रुक जाना चाहिए था |पर तुम्हे हमारे घर की इज्जत से क्या लेना देना ? तुम्हे तो केवल श्रद्धा चाहिए , वो मरी तो नहीं जा रही है | उसे रोग बढ़ा चढ़ा कर बताने की आदत है |

दो…

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Added by shubhra sharma on August 26, 2013 at 12:44pm — 24 Comments

लघु -कथा - अधूरा काम

बूढी दादी अपने पोते गोलू को लेकर गाँव के प्राथमिक विद्यालय में गई . उनको देखकर मास्टर साहब कहने लगे कि आपने इतना कष्ट क्यों किया . दादी जी बोली -गोलू पढ़ेगा इसी विद्यालय में लेकिन दोपहर का खाना ये घर पर ही खायेगा . बस एक ही बात कहने को आयी हूँ कि इसके पिता ने हमें शहीद की माँ होने का गौरव दिया है और इसे उसके अधूरे काम को पूरा करने के लिए जिन्दा रहना है .

शुभ्रा शर्मा 'शुभ '

मौलिक और अप्रकाशित

Added by shubhra sharma on August 12, 2013 at 1:30pm — 31 Comments

लघु कथा - झूठ

अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से  उसकी आँख  लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को…

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Added by shubhra sharma on August 1, 2013 at 11:30am — 25 Comments

काश : होते परिंदे

चाँद यहाँ भी ,

चाँद वहाँ  भी 
इंसान में लहू 
 यहाँ भी वहाँ भी
फिर भी क्यूँ है ?
सरहदों पर लकीरें 
लोग बने क्यों फिर रहे 
लकीर के फ़क़ीर 
क्यूँ बना डाली 
नफरतों की  दीवार 
कुछ वक्त पहले तक 
थे दोनों एक 
मुल्क एक दुःख एक 
राज एक सुख एक 
थे एक ही जगह के वाशिंदे 
काश  हम इंसान भी होते परिंदे 
जो उड़ते यहाँ भी…
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Added by shubhra sharma on July 23, 2013 at 12:00pm — 20 Comments

गंगा माँ

हिम शिखर से तू आती हो

गंगा सागर तक जाती हो

सारी नदियाँ तुमसे मिलकर

गंगा बन आगे बढ़ती है

                 गंगा तू सुखदायिनी

स्वर्गलोक से पाप हरने

धरती पर तू सतत बहने

सगर पुत्रों को मोक्ष देने

शिव जटा  से आयी हो

               गंगा तू मोक्ष दायिनी

जड़ी बूटी तू साथ लिए

कल -कल छल -छल बहती हो

जाति -धर्म का भेद न जाने

तत्पर पल -पल रहती हो

               गंगा तू आनंद दायिनी

दूर करो माँ कटुता पशुता

भर आयी जो जन -जन में…

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Added by shubhra sharma on March 17, 2013 at 9:48am — 2 Comments

मेरे सपने में

बह रही थी एक नदी मेरे सपने में
रह गयी फिर भी प्यासी सपने में

जी रही थी इस दुनिया में मगर
देखती थी दूसरी दुनिया सपने में

करती थी इंतेजार उसका दिनभर
आता था जो आंसू पोछने सपने में

यकीन था आएगा वो पूरा करने
कर गया था वादे, जो सपने में

ढूढती हूँ एक वही चेहरा भीड़ में
बस गया था अक्श जिसका सपने में

काश ।अब सूरज ना निकले कभी
'शुभ' देखती रहे हरवक्त उसे सपने में

Added by shubhra sharma on January 11, 2013 at 10:00am — 17 Comments

नए साल की नई सुबह

पुराने साल को अलविदा, नए साल का स्वागतम

पुराने अनुभवों से नया गीत गायेंगे हम

नई उमंगें, नई तरंगे लेकर आया नया साल

नए वादों, नए इरादों से नई कहानी लिखेंगे हम



बुराइयों को मिटाकर

अच्छाइयों को अपनाकर

काँटों पर राह बनाकर

नई मंजिलें पाएंगे हम



बेटियां दामिनी बन तड़प-तड़प नहीं मरेगी अब

कल्पना ,सुनीता बन चाँद को घर बनाएँगी अब

आतंकवादी ,बलात्कारी को फांसी पर चढ़ायेंगे अब

भ्रष्टाचार मिटाकर विकसित भारत…

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Added by shubhra sharma on December 29, 2012 at 11:00am — 12 Comments

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