For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काश : होते परिंदे

चाँद यहाँ भी ,

चाँद वहाँ  भी 
इंसान में लहू 
 यहाँ भी वहाँ भी
फिर भी क्यूँ है ?
सरहदों पर लकीरें 
लोग बने क्यों फिर रहे 
लकीर के फ़क़ीर 
क्यूँ बना डाली 
नफरतों की  दीवार 
कुछ वक्त पहले तक 
थे दोनों एक 
मुल्क एक दुःख एक 
राज एक सुख एक 
थे एक ही जगह के वाशिंदे 
काश  हम इंसान भी होते परिंदे 
जो उड़ते यहाँ भी ,वहाँ भी 
जिन्हें रोक न पाती  लकीरें
छोटी पड़ जाती जहाँ 
नफरतों की दीवारें 
कभी गंगा कभी झेलम के पानी पी 
फैलाते अमन चैन का सन्देश 
.
मौलिक और अप्रकाशित  

Views: 704

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 10:03am

मैं ओ बी ओ परिवार से जुड़े सभी सदस्यों को ,खासकर ओ बी ओ प्रबंधन को , तहे दिल से शुक्र गुजार हू  जिन्होंने मुझे अपनी विचारो की अभिव्यक्ति के लिए एक समृध मंच दिया  , 

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:57am

आदरणीय लडिवाला  जी  , हौसलाफजाई के लिए   बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:54am

आदरणीय  आशुतोष मिश्रा  जी  ,आपको मेरी कविता अच्छी लगी ,  बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:51am

आदरणीया  प्राची जी  ,  बहुत बहुत धन्यवाद , 

Comment by shubhra sharma on July 30, 2013 at 9:49am

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , उत्साह वर्धन हेतु बहुत बहुत धन्यवाद , आपकी लिखी ये पंक्तियाँ लम्बे समय तक प्रेरित करेगी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 25, 2013 at 10:46am
छोटी पड़ जाती जहाँ 
नफरतों की दीवारें 
कभी गंगा कभी झेलम के पानी पी 
फैलाते अमन चैन का सन्देश -------काश अब भी ऐसा ही हो, न कोई संदेह हो न कोई दिवार | सुंदर प्रस्तुति केलिए बधाई 
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 25, 2013 at 6:44am

मनभावन ..क्या लाजबाब कामना की है आपने ..पंख होते तो उड़ जाती मैं /ये पंक्तियाँ बरबस याद आ गयीं ..न कोई सरहद न कोई दीवार ...बस जहाँ में हो प्यार ही प्यार ..ढेरो बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 24, 2013 at 12:08pm

ममस्पर्शी अभिव्यक्ति 

बहुत सुन्दर , हार्दिक बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 24, 2013 at 9:53am

आदरणीया शुभ्राजी,  आपके सद्विचारों से सुखी हुए.

इसी ज़मीन पर निदा फ़ाज़ली की एक बेजोड़ और बहुत ही प्रसिद्ध ग़ज़ल है, वो अनायास याद आ गयी.

शुभकामनाएँ

Comment by shubhra sharma on July 23, 2013 at 10:53pm

आदरणीय अरुण जी अच्छे अभ्युक्ति के लिए  बहुत बहुत धन्यवाद 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
21 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। आपने सही कहा…"
Oct 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"जी, शुक्रिया। यह तो स्पष्ट है ही। "
Sep 30
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी"
Sep 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service