अजान सुन हामिद की नींद खुली, उसे याद आया कि उसके मालिक ने आज रात वध हेतु एक गाय लाने को कहा है. हामिद मालिक से पैसे ले बाजार से गाय खरीदकर आ रहा था. रास्ते में हामिद कभी गाय को पानी पिलाता तो कभी हरी घास खिलाता । गाय को बृक्ष की छाया में बांध खुद भी आराम करने लगा .थके होने के वजह से उसकी आँख लग गयी. अचानक आँख खुलने पर वह घबरा कर गाय ढूंढने लगा, तभी उसकी नजर मंदिर के अहाते में गाय पर पड़ी. वह गाय को मंदिर से निकालकर ले जाना चाहता था. लेकिन मंदिर के लोग इसे नन्दी कहकर विरोध कर रहे थे. बात गाँव में आग की तरह फ़ैल गयी. हामिद के मालिक भी अपने आदमियों के साथ मंदिर के पास पहूँचकर गाय अपने हवाले करने को कह रहे थे . माहौल काफी तनावपूर्ण हो गया. गाय चुपचाप हामिद को देख रही थी. तभी हामिद बीच में जाकर मालिक का पैर पकड़ गिडगिडाकर कहा कि मालिक मैंने गाय खरीदी ही नहीं है. मेरे पैसे तो रास्ते में ही गिर गए थे .
Comment
बहुत बढ़िया व सफल लघु कथा
आदरणीय सौरव पाण्डेय जी , आपके उत्साह्बर्धन रूपी अभिव्यक्ति का इंतज़ार था , बहुत बहुत आभार
आदरणीया गीतिका जी , सराहना और प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार
आदरणीया वसुन्धरा जी , प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद
ऐसा कहना ही दिलासा दे गया.
शुभकामनाएँ
गाय चुपचाप हामिद को देख रही थी..... मर्म को छूने लेने वाली सशक्त पंक्ति !!
बधाई आदरणीया शुभ्रा जी !!
दिल को छू जाने वाली लघु कथा...बधाई शुभ्रा जी !!
आदरणीय अमन जी ,मेरी लघु-कथा की सराहना के लिए धन्यवाद
मैंने आपकी ये पहली रचना पड़ी है |
सच मे आपकी लघु कथा मानव मन की सच्ची दुविधा दर्शा गयी !
आपकी लेखी सफल है
आभार
आदरणीय नीरज जी , बहुत बहुत धन्यवाद
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