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प्रेम से : कुछ अलग ..कुछ जुदा, जीवन का सच ..

ये पेट की आग भी

क्या क्या न कराती है ...

 

चैन नहीं दिन में

रातें भी घबराती हैं ...

 

जीवन जीने की इच्छा

मन को ललचाती है ...

 

आगे बढ़ने की ख्वाइश

मेहनत खूब कराती है ...

 

न गर्मी से तपता है तन

न ठण्ड डरा पाती है .....

 

ये पेट की आग भी

क्या क्या न कराती है ...

मेहनत नहीं करेंगे .. तो आगे कैसे बढ़ेंगे ...

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Comment

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Comment by Anita Maurya on January 17, 2011 at 7:38pm
impossible .. shailesh ji... ye meri apni kavita hai..
Comment by dr.shailesh pathak on January 15, 2011 at 3:55pm
kamal he yahi kavita vina patil nam ki ek kaviytri jo thane me he unki bhi he ???????? sach kon ap ya vo ??????? jara dhyan de !!!!!!!!!!!
Comment by Anita Maurya on December 24, 2010 at 4:50pm
आप सबको मेरी रचना पसंद आई इसके लिए बहुत बहुत आभारी हूँ ...
Comment by रंजना सिंह on December 23, 2010 at 12:18pm

sahi kaha aapne...bilkul sahi...

 

bahut hi sundar rachna...

Comment by Bhasker Agrawal on December 23, 2010 at 6:20am
सत्य वचन...बहुत खूब

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 22, 2010 at 9:18pm

अनीता जी, आपकी रचनाओं मे अब पैनापन आने लगा है, बेहतरीन कविता है, मेहनतकश लोगो को समर्पित यह रचना अत्यंत खुबसूरत बन पड़ी है, इस पूरी कविता का निष्कर्ष इन दो पक्तियों मे ....

आगे बढ़ने की ख्वाइश

मेहनत खूब कराती है....क्या बात है ...

आगे भी हम सब को आपकी रचनाओं का और अन्य रचनाओं पर आपके बहुमूल्य टिप्पणियों का इन्तजार रहेगा |

Comment by anupama shrivastava[anu shri] on December 22, 2010 at 7:03pm
bahut khoob .apki rachna anita ji..........sachhai ko bayan karti hui..................badhaiyan...

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