दुनिया को दुनिया क्यों कहते हैं ?
इंसानों की दुकान क्यों नहीं कहते ?
जहाँ इंसान बिकते हैं..
बिकते हैं कुछ हो बेआबरू यहाँ, कुछ हैं जो होकर महान बिकते हैं..
देते हजारों को गुलामी ये जन ,खुदको शहंशाह मान बिकते हैं..
लो हो गयीं शख्सियतें कीमती, खरीदो ये महंगे सामान बिकते हैं..
हो गए हैं जिंदगी से खाली शायद, जिस्म बिकते हैं जैसे मकान बिकते हैं..
पूछा तो बोले इसमें शर्म कैसी, हमें फक्र है हम सीना तान बिकते हैं..
देखी जो जमीं की…
ContinuePosted on December 2, 2011 at 4:00pm — 2 Comments
मैं कई लोगों के मुंह से सुन चुका हूँ के अन्ना हजारे के आंदोलन से अराजकता की स्तिथि पैदा हो रही है या हो सकती है
तो में उन लोगों से पूछना चाहता हूँ के अराजकता का मतलब क्या है
ये जो ६५ साल से भारत की ज्यादातर जनता को भ्रष्टाचार के कारण संघर्षपूर्ण जीवन जीना पड़ता है, क्या ये अराजकता नहीं है
क्या ये जो कमजोर कानूनों का ढाल बनाकर भ्रष्ट लोग कानून की ही धच्चियाँ उड़ाते हैं, क्या ये अराजकता नहीं है
इन जैसे लोगों ने किताबी जानकारी तो काफी ले ली हैं पर इनको…
ContinuePosted on August 19, 2011 at 10:00pm
Posted on June 23, 2011 at 7:30pm — 4 Comments
Posted on May 6, 2011 at 5:07pm — 2 Comments
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Comment Wall (8 comments)
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय भाष्कर जी, सादर अभिवादन !
कृपया नीचे दिया गया लिंक अवश्य पढ़े, धन्यवाद |
http://www.openbooksonline.com/page/notice-1
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
भास्कर जी, भाव वस्तुतः उच्च है ......अभय दीपराज