रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय
आमादा तो है नस्लकुशी पर अमीरे शह्र
डरता भी है कि उसका पसीना उबल न जाय
अजदाद से मिला जो असासा बचाके रख
मुट्ठी में सुखी रेत की तरह फ़िसल न जाय
तस्वीर तेरी देखकर कुछ ग़मज़दा हूँ मैं
इक दिन तेरे शबाब का सूरज ये ढल न जाय
हरगिज न आप जाइये साहिल के आस पास
डर है शवाए हुस्न से दरिया उबल न जाय
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
सुंदर ग़ज़ल
रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय
बधाई स्वीकारें सुशील ठाकुरजी
हरगिज न आप जाइये साहिल के आस पास
डर है शवाए हुस्न से दरिया उबल न जाय...इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस अति बेहतरीन दिलकश शेर के लिए ढेरों बधाई आदरनीय सुशील जी ..एक निवेदन उर्दू के शब्दों का मतलब भी अगर नीचे दे देंगे तो समझने में सहजता होगी ..सादर नमन के साथ
तस्वीर तेरी देखकर कुछ ग़मज़दा हूँ मैं
इक दिन तेरे शबाब का सूरज ये ढल न जाय.........यह शेर बहुत पसंदीदा हुआ
सुंदर गजल पर दाद कुबूल कीजिये आदरणीय शुशील जी
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
रखना ख़याल शह्र का मौसम बदल न जाय
जुल्मत कहीं चराग़ की लौ को निगल न जाय ............. बहुत खूबसूरत अशआर , बहुत बधाई आपको आदरणीय ।
सुशील भाई , अच्छी गज़ल हुई , बहुत बहुत बधाई !!
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