वो जिसको मालोज़र पैसा बहुत है
हक़ीक़त में वही रोता बहुत है
यक़ी करना ज़रा मुश्किल है तुझपे
तेरा तर्ज़े अदा मीठा बहुत है
वो पहली आरी की ज़द में रहेगा
शजर जो बाग़ में सीधा बहुत है
उसे तो साफगोई की है आदत
बगरना आदमी अच्छा बहुत है
वो कहता है "तुम्हें हम देख लेंगे"
हमारे पास भी रस्ता बहुत है
कभी तू ने हमें अपना कहा था
हमारे वास्ते इतना बहुत है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
वो पहली आरी की ज़द में रहेगा
शजर जो बाग़ में सीधा बहुत है-----इस शेर की जितनी तारीफ़ करूँ कम होगी ,कितनी गंभीर बात कही है शेर के माध्यम से ,क्या कहने इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से दाद देती हूँ ।
बेपनाह खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ... दाद क़ुबूल करें
ग़ज़ल का हर शेर क़ामयाब है, आदरणीय सुशील जी.
अतिशय बधाइयाँ
कभी तू ने हमें अपना कहा था
हमारे वास्ते इतना बहुत है
सुंदर ग़ज़ल
बधाई स्वीकारें
कभी तू ने हमें अपना कहा था
हमारे वास्ते इतना बहुत है.... वाह सुंदर गज़ल प्रस्तुति बधाई आपको
//उसे तो साफगोई की है आदत
बगरना आदमी अच्छा बहुत है// क्या खूब कहा आदरणीय सुशील सर आपने वाह दाद कुबूल करें
वाह-वाह.... केवल वाह ही वाह, बड़ी शानदार रचना है । बशीर साहब की कुछ पंक्तियां याद आ गई, सादर
मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है
खुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है
मैं हर लम्हे मे सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है
सुशील भाई , बहुत अच्छी गज़ल कही , बधाई !
यक़ी करना ज़रा मुश्किल है तुझपे
तेरा तर्ज़े अदा मीठा बहुत है
वो पहली आरी की ज़द में रहेगा
शजर जो बाग़ में सीधा बहुत है ---------------- दो शेर विषेश लगे !!
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
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