For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Sushil Thakur
  • Male
  • bhagalpur
  • India
Share on Facebook MySpace

Sushil Thakur's Friends

  • वेदिका
  • MAHIMA SHREE
 

Sushil Thakur's Page

Profile Information

Gender
Male
City State
Jharkhand
Native Place
Mahagama
Profession
Service
About me
I am an officer at CIL, A singer and a shayar

Sushil Thakur's Photos

  • Add Photos
  • View All

Sushil Thakur's Blog

ग़ज़ल

मफऊल फ़ायलात मुफ़ाईल फायलुन

आया था लुत्फ़ लेने नवाबों के शह्र में 

हैरतज़दा खड़ा हूँ नक़ाबों के शह्र में 

 

आलूदा है फज़ाए बहाराँ भी इस क़दर 

खुशबू नहीं नसीब गुलाबों के शह्र में 

 

तहज़ीबे कोहना और तमद्दुन नफासतें 

आया हूँ सीखने में नवाबों के शह्र में 

 

ऐसी हसीं वरक़ को यहाँ देखता है कौन 

हर सम्त जाहेलां है किताबों के शह्र में 

 

बेहोश होने का न गुमां हमको हो सका 

हर शख्स होश में है शराबों के…

Continue

Posted on June 13, 2014 at 4:00pm — 4 Comments

ग़ज़ल

2122   1122   1122   22

दिल में उम्मीद तो होटों पे दुआ रखता हूँ

तुम चले आना मैं दरवाज़ा खुला रखता हूँ

 

ये तेरा हुस्न अगर जलता शरारा है तो क्या  

मैं भी जज़्बात की जोशीली हवा रखता हूँ

 

राहे-उल्फ़त में तू अपने को अकेला न समझ

दिल में चाहत का दिया मैं भी सदा रखता हूँ

 

ख़ुशनुमा मंज़रो - तस्वीर न गुल बूटे से 

अपने कमरे को दुआओं से सजा रखता हूँ

 

अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’

इसलिए महल में…

Continue

Posted on June 11, 2014 at 10:13pm — 8 Comments

ग़ज़ल

 2122   2122   2122   2122

ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में  

फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में

 

झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली 

जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में

 

सिर्फ़ ख़ाकी, खादी पर उठती रही हैं उंगलियाँ

मुझको तो नंगे नज़र आये हैं सब हम्माम में   

 

मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम

क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में

 

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या…

Continue

Posted on June 11, 2014 at 10:07pm — 9 Comments

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ
खिलौना हूँ मैं मिट्टी से बना हूँ

दग़ा खाने में तू रहता है आगे
दिले-नादान मैं तुझसे ख़फ़ा हूँ

सिला मुझको भलाई का भला दे
ज़ियादा कुछ नहीं मैं माँगता हूँ

मैं जबसे लौटा हूँ दैरो-हरम से
पता सबसे ख़ुदा का पूछता हूँ

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

Posted on May 28, 2014 at 8:00pm — 8 Comments

Comment Wall

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

  • No comments yet!
 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
20 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service