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दिल में उम्मीद तो होटों पे दुआ रखता हूँ
तुम चले आना मैं दरवाज़ा खुला रखता हूँ
ये तेरा हुस्न अगर जलता शरारा है तो क्या
मैं भी जज़्बात की जोशीली हवा रखता हूँ
राहे-उल्फ़त में तू अपने को अकेला न समझ
दिल में चाहत का दिया मैं भी सदा रखता हूँ
ख़ुशनुमा मंज़रो - तस्वीर न गुल बूटे से
अपने कमरे को दुआओं से सजा रखता हूँ
अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’
इसलिए महल में मिट्टी का घड़ा रखता हूँ
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’
इसलिए महल में मिट्टी का घड़ा रखता हूँ................बहुत खूबसूरत ख़याल
हार्दिक बधाई
.वाह! बहुत सुंदर. गजल आदरणीय शुशील जी,
बढ़िया .. क्या बात है दिली दाद प्रेषित है सादर
दिल में उम्मीद तो होटों पे दुआ रखता हूँ
तुम चले आना मैं दरवाज़ा खुला रखता हूँ.............वाह! बहुत सुंदर. बहुत कुछ कह देता हुआ मतला
ये तेरा हुस्न अगर जलता शरारा है तो क्या
मैं भी जज़्बात की जोशीली हवा रखता हूँ.................क्या बात कही है .
बेहतरीन गजल आदरणीय शुशील जी, दिली बधाई स्वीकारिये
शानदार गज़ल हेतु बधाई स्वीकारें आदरणीय
सुंदर गजल हेतु बधाई आपको आ0 सुशील जी ।
shandaaar ghazal सुशील जी बधाई
अपनी औक़ात कहीं भूल न जाऊँ ‘साहिल’
इसलिए महल में मिट्टी का घड़ा रखता हूँ ----- लाजवाब ! बहुत बधाइयाँ , सुन्दर ग़ज़ल कही भाई सुशील जी ॥
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