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मेरी नज़रों में तो वो खरगोश ही था मोतवर

मेरी नज़रों में तो वो खरगोश ही था मोतवर
जिसने बाज़ी हारकर कछुए को कर डाला अमर

यूं हुई पलकों से रुखसत नींद कि लौटी नहीं
लाख ही उसको बुलाते रह गए हम रातभर

इश्क़ का जब-जब हुआ दिल हद से ज़्यादा बेक़रार
हुस्न ने तब- तब कहा कि और थोड़ा सब्र कर

ऐ क़लमकारो वो अह्सासे मुहब्बत भी लिखो
माँ की छाती मुंह में जब लेता है बच्चा दौड़कर

क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर

बेतहाशा बढ़ रही है आज दौलत की हवस
आख़िर इन्सां क्या करेगा ले के इतना मालोज़र

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 8, 2013 at 8:58am

आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है, बच्चा दौड़कर वाला शेर और गठरी वाला शेर बहुत ही बढ़िया लगा , दाद कुबूल करें । 

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 8, 2013 at 8:04am

क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए 
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर------------बेहतरीन शे'र  बधाई , सर जी 

Comment by vandana on September 8, 2013 at 6:20am

बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय सुशील जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 8, 2013 at 12:23am

क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर.........वाह! बहुत शानदार,

बेहतरीन गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय शुशील जी

Comment by Meena Pathak on September 7, 2013 at 10:33pm

बहुत बहुत सुन्दर .... बधाई आदरणीय


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 7, 2013 at 8:44pm

आदरणीय सुशील भाई , बेहतरीन गज़ल कही है आपने !!!! बधाई !!!!

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