मेरी नज़रों में तो वो खरगोश ही था मोतवर
जिसने बाज़ी हारकर कछुए को कर डाला अमर
यूं हुई पलकों से रुखसत नींद कि लौटी नहीं
लाख ही उसको बुलाते रह गए हम रातभर
इश्क़ का जब-जब हुआ दिल हद से ज़्यादा बेक़रार
हुस्न ने तब- तब कहा कि और थोड़ा सब्र कर
ऐ क़लमकारो वो अह्सासे मुहब्बत भी लिखो
माँ की छाती मुंह में जब लेता है बच्चा दौड़कर
क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर
बेतहाशा बढ़ रही है आज दौलत की हवस
आख़िर इन्सां क्या करेगा ले के इतना मालोज़र
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीय सुशील जी, ग़ज़ल अच्छी हुई है, बच्चा दौड़कर वाला शेर और गठरी वाला शेर बहुत ही बढ़िया लगा , दाद कुबूल करें ।
क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर------------बेहतरीन शे'र बधाई , सर जी
बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीय सुशील जी
क़ायदे क़ानून के फंदे हैं बस मेरे लिए
उसने तो गठरी बनाकर रख दिया है ताक पर.........वाह! बहुत शानदार,
बेहतरीन गजल, बहुत बहुत बधाई आदरणीय शुशील जी
बहुत बहुत सुन्दर .... बधाई आदरणीय
आदरणीय सुशील भाई , बेहतरीन गज़ल कही है आपने !!!! बधाई !!!!
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