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2122 1212  22

कुछ बहा पर बचा ज़रा भी है

जख़्म लेकिन, कही हरा भी है

जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर

प्यार से दिल मेरा भरा भी है

ख़्वाब ताबीर तक कहाँ पहुंचा

थक के हारा, कभी मरा भी है

बात करता है वो महज़ सच की

सरफिरा है मगर खरा भी है   

जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ

हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है

ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी

स्वाद मीठा है चरपरा भी है  

कोई कहता मुझे,मै खुश होता

तू कहीं से गज़ल सरा भी है

  मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 9:25pm

आदरणीय  अनुराग जी , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 13, 2013 at 9:12pm

बहुत ही सुंदर , बात करता है वो महज सच की 

                    सरफिरा है मगर खरा भी है ! दिल को छू गए , हार्दिक बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 9:12pm

आदरणीय वीनस भाई , बहुत खुशी हुई ,आपने समय दिया इसके लिए आपका आभार , सराहना के लिए बहु शुक्रिया !! मेरी पहली गज़ल है जिसमे कोई गलती नही निकली , !!

Comment by वीनस केसरी on September 13, 2013 at 8:03pm

बात करता है वो महज़ सच की

सरफिरा है मगर खरा भी है   


जख़्म तुम सोच के ही दिखलाओ

हाथ निश्तर है ,उस्तरा भी है


ये दो अशआर खूब पसंद आए .. ग़ज़ल अपनी रवानी में बहा ला जाती है
मूल शब्द निश्तर अपने प्रचलित रूप नश्तर के साथ अब अधिक सहज लगता है ...मैं हिन्दुस्तानी ज़बान की ग़ज़ल में नश्तर ही प्रयोग करता


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 6:05pm

आदरणीय विजय भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 6:04pm

आदरणीय ललित भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका दिली आभार !!

Comment by vijay nikore on September 13, 2013 at 6:00pm

इस सुन्दर गज़ल के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय गिरिराज जी।

Comment by Dr Lalit Kumar Singh on September 13, 2013 at 5:36pm

 अच्छी गजल, सुंदर रचना के लिए बधाई |


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Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 3:59pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया !!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 13, 2013 at 3:16pm

जिनको बांटा उन्हें मिला भी पर

प्यार से दिल मेरा भरा भी है........वाह ! बहुत खूब

ज़िन्दगी एक स्वाद क्या मानी

स्वाद मीठा है चरपरा भी है ....... यह शेर बहुत पसंद आया

बढ़िया गजल प्रस्तुति , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय गिरिराज जी

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