For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

2122   1212     22 

धूप हमको निचोड़ देती है ,

ठंड घुटने सिकोड़ देती है ।

 

पत्तियों को बड़ी शिकायत है,

ये जड़ें भूमि छोड़ देती हैं।

 

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

 

दर खुले ही थे, हमने ये देखा,

ये हवा फिर से भेड़ देती है ।

 

रहनुमाओं की बातें सुन के तो,   

शर्म ख़ुद हाथ जोड़ देती है ।


हाल जैसे ही क़ाबू आता है,

याद क्यों फ़िर से छेड़ देती है ?

 मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

Views: 657

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 6:37pm
आदरणीया प्राची जी , गलतियां बताने के लिये और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभार !! आगे ज़रूर सुधार करूंगा !!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:43pm

आदरणीय हेमन्त भाई , गज़ल की सराहना केलिये आपका हर्दिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:39pm

आदरणीया विजया श्री जी , गलतियाँ नज़र अन्दाज़ कर के भी आपने उत्साह वर्धन किया , आपका बहुत आभार !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 11, 2013 at 5:37pm

वीर भाई , बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफज़ाई के लिये !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 11, 2013 at 4:56pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

बहुत सुन्दर गज़ल प्रयास.

हमकवाफी शब्दों का चौथे और छठे शेर में पालन नहीं हुआ है.. और दूसरे शेर के अंत में  है की जगह हैं  लिया जाना दोष माना जाएगा.

शिल्प कथ्य अभी और कसावट की मांग रखते हैं.. गज़लकार इसपर अवश्य ही चर्चा करेंगे.

सादर शुभकामनाएँ 

Comment by hemant sharma on September 10, 2013 at 11:11pm

आदरणीय गिरिराज जी बहुत ही सुन्दर, सामयिक गजल .............बधाई

Comment by annapurna bajpai on September 10, 2013 at 10:21pm
वाह !!!! आदरणीय भण्डारी जी बहुत बधाई आपको ।
Comment by vijayashree on September 10, 2013 at 1:23pm

चर्चा मुद्दे पे जब भी आती है,

जाने क्यूँ राह मोड़ देती है ।

बहुत खूब गिरिराज भंडारी जी  बधाई स्वीकारें    

Comment by Anil Chauhan '' Veer" on September 10, 2013 at 9:03am

बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल है सर ..... हार्दिक बधाई  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 10, 2013 at 7:07am

आदरणीय वन्दना जी , आप सही भी हो सकती हैं !! काफिया मे गलती मुझसे होती है , एक बार पूरी गज़ल खारिज हुई है !! मै फिर से पढूंगा !! आपका आभार !!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. गुरप्रीत भाई. आपसे शिक़ायत यह है कि हमें आपकी ग़ज़लें पढ़ने को नहीं मिल रही…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. समर सर की इस्लाह से तक़ाबुल ए रदीफ़ दूर हो गया है.शेर अब यूँ पढ़ा जाए .कड़कना बर्क़ का चर्बा…"
1 hour ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"वाह वाह वाह आदरणीय निलेश सर, बहुत समय बाद आपकी अपने अंदाज़ वाली ग़ज़ल पढ़ने को मिली। सारी ग़ज़ल…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. लक्ष्मण जी,वैसे तो आ. तिलकराज सर ने विस्तार से बातें लिखीं हैं फिर भी मैं थोड़ी गुस्ताखी करना…"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण धामी जी"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"बहुत शुक्रिया आदरणीय तिलकराज कपूर जी, मैं सुधारने की कोशिश करता हूँ।"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय निलेश जी फिलबदी है, कल आपकी ग़ज़ल में टिप्पणी के बाद लिखा है।"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. शिज्जू भाई,जल्दबाज़ी में मतले को परिवर्तित करने के चलते अभी संभावनाएं बन रही हैं कि समय के साथ…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. तिलकराज सर,आपकी विस्तृत टिप्पणी ने संबल मिला है.मैं स्वयं के अशआर को बहुत कड़ी परीक्षा से…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"धन्यवाद आ. लक्षमण धामी जी "
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"श्रद्धेय श्री तिलक राज कपूर जी, आप नाचीज़ की ग़ज़ल तक  पहुँचे, आपका अतिशय आभार, …"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल तक आप आये और अपना बहुमूल्य समय दिया, आपका आभारी…"
3 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service