बह्र : २२१ २१२१ १२२१ २१२
सत्ता की गर हो चाह तो दंगा कराइये
बनना हो बादशाह तो दंगा कराइये
करवा के कत्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास
रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये
कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में
पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये
चलते हैं सर झुका के जो उनकी जरा भी गर
उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये
प्रियदर्शिनी करें तो उन्हें राजपाट दें
रधिया करे निकाह तो दंगा कराइये
मज़हब की रौशनी में व शासन की छाँव में
करना हो कुछ सियाह तो दंगा कराइये
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया ram shiromani जी
करवा के कत्ल-ए-आम बुझा कर लहू से प्यास
रहना हो बेगुनाह तो दंगा कराइये
कितना चलेगा धर्म का मुद्दा चुनाव में
पानी हो इसकी थाह तो दंगा कराइये
चलते हैं सर झुका के जो उनकी जरा भी गर
उठने लगे निगाह तो दंगा कराइये
वाह !! आदरणीय धर्मेन्द जी , लाजवाब गज़ल कही आपने, हर शेर बेमिसाल हैं !!
बहुत बहुत शुक्रिया पियुष द्विवेदी जी
बहुत बहुत धन्यवाद 'वेदिका' जी
बहुत बहुत शुक्रिया विजय मिश्र जी
बहुत बहुत धन्यवाद बागी जी। आपने पसंद किया, लेखन सफल हुआ।
बहुत बहुत शुक्रिया annapurna bajpai जी
बहुत बहुत धन्यवाद अरुन शर्मा 'अनन्त' जी
बहुत बहुत शुक्रिया रविकर जी
बहुत बहुत शुक्रिया डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जी
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