हमने घर की दीवारों में
जीवन की इक आस सजायी
रत्ती-रत्ती सुबह बटोरी
टुकड़ा-टुकड़ा साँझ संजोई
इस चुभती तिमिर कौंध में
दीपों की बारात सजायी
तिनका-तिनका भाव बटोरे
टूटे-फूटे सपन संजोये
साँसों की कठिन डगर पे
आशा ही दिन-रात सजायी
भूख सहेजी, प्यास सहेजी
सोती-जगती रात सहेजी
यूँ चलते, गिरते-पड़ते
कितनी टूटी बात सजायी
तेरे हाथों के स्पर्शों ने
इन होठों की मुस्कानों ने
मेरे इस सूने मन में
सहज सुनहरी प्रीत सजायी
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय केवल जी, मेरी रचना को समय देने तथा मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार!
आ0 बृजेश भाई जी, भाई जी यह क्या है?
हमने घर की दीवारों में .......हमने या ..मैंने
जीवन की इक आस सजायी
रत्ती.रत्ती सुबह बटोरी
टुकड़ा.टुकड़ा साँझ संजोई.......प्रवाह बाध्य?
इस चुभती तिमिर कौंध में......गेयता बाध्य है!
दीपों की बरसात सजायी.......दीपों की अवलियां या कतारें या समूह होते हैं..आपने दीपों की बरसात ही कर दी। वाह.. वाह खूब कही।
तिनका.तिनका भाव बटोरे
टूटे.फूटे सपन संजोये......स्वप्न या सपने
साँसों की कठिन डगर पे
उम्मीदों की बारात सजायी..........मात्रा का भी निर्वहन नहीं हुआ।
भूख सहेजीए प्यास सहेजी
सोती.जगती रात सहेजी
यूँ चलतेए गिरते.पड़ते
कितनी टूटी बात सजायी
तेरे हाथों के स्पर्शों ने
इन होठों की मुस्कानों ने......मुस्कानों ने या से
मेरे इस सूने मन में
सहज सुनहरी प्रीत सजायी
-------------------------------------------------------------------------सादर,
आदरणीया अन्नपूर्णा जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय शिज्जू जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय अरुन भाई आपका हार्दिक आभार!
बहुत ही सुंदर रचना पढ़ने वाला मंत्र मुग्ध सा पढ़ता चला जाता है। बार बार पढ़ें फिर भी कम ही है आपकी लेखनी का जादू कुछ ऐसा ही है । बहुत बधाई आपको आ0 बृजेश जी ।
वाह आदरणीय बृजेशजी प्रवाहमयी प्रस्तुति है पढ़ो तो यूँ लगता है पढ़ता ही रहूँ, दिली दाद कुबूल करें
वाह वाह आदरणीय बृजेश भाई जी मुग्ध कर दिया आपने बहुत ही सुन्दर मनोहारी रचना है भाई जी भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई स्वीकारें.
आदरणीय जितेन्द्र जी आपका बहुत आभार!
आदरणीय रविकर जी मार्गदर्शन हेतु आपका हार्दिक आभार!
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