ग़ज़ल –
२१२२ १२१२ २२
इल्म की रोशनी नहीं होती ,
ज़िन्दगी ज़िन्दगी नहीं होती |
एक कोना दिया है बच्चों ने ,
और कुछ बेबसी नहीं होती |
रंग आये कि सेवई आये ,
तनहा कोई ख़ुशी नहीं होती |
दिल के टूटे से शोर होता है ,
ख़ामुशी ख़ामुशी नहीं होती |
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती |
माँ के आँचल से दूर हैं बच्चे ,
बाप से बंदगी नहीं होती |
जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,
मुझसे ये नौकरी नहीं होती |
झूठ छाया है हर रिसाले में ,
सच की सुर्खी कभी नहीं होती |
*दौरे हाज़िर भी एक बवंडर है ,
आँधियों की कमी नहीं होती |
*संशोधित
(मौलिक और अप्रकाशित)
- अभिनव अरुण
[१२०९२०१३]
Comment
आ. श्री वीनस जी आपकी कक्षाओं से शिल्प सीख रहा हूँ वरना मैं तो ग़ज़ल लिख रहा था कह कहाँ रहा था ?? ..सो बहुत आभार आपका .. मेरी ग़ज़लों में बस भाव - कहन मेरे और अगर इश्क वाल लव की तरह शिल्प वाला शेर है तो वो आपका आपके नाम ..आभार और नमन आपका !!
..खामुशी को पढने बोलने में अलग ही आनंद है दिल से साथी पढ़ बोल कर देखें और यहाँ बहर में बैठ गया सो खामुशी है ..वरना मैं भी खामोश ही रहता :-)
दौरे हाज़िर भी एक बवंडर है ,
आँधियों की कमी नहीं होती |
... आ. बागी जी सही कहा ध्यान नहीं गया अगर आखिरी शेर को इस तरह कर दें तो तागाफुले रदीफ़ से बचा जा सकता है डायरी में ठीक कर लिया है ! सादर आभार सहित !!
आदरणीय श्री बागी जी ग़ज़ल की सराहना के लिए धन्यवाद ..जी हजुरी वाला शेर बस मिज़ाज का शेर है ...कह दिया सो कह दिया .... हां ये भी सत्य है आज रोटी रोज़ी हकीकत है वरना कोहराम मचाना हमें भी खूब आता है :-) आभार !!
//
जी हुज़ूरी करूँ सलामी दूं ,
मुझसे ये नौकरी नहीं होती |//
आय हाय हाय, क्या बात कही है आदरणीय अभिनव भाई जी, दिल जीत लिया, खूबसूरत ख्याल, सभी अश आर बढ़िया लगे, अंतिम शेर पर तवज्जो चाहूँगा, तकाबुले रदिफ़ दोष लक्षित है |
बहुत बहुत बधाई प्रेषित है इस ग़ज़ल पर |
खामोशी (मूल शब्द) २२२
खामोशी (खामुशी अनुसार) २१२
खामोशी (खमोशी अनुसार) १२२
अपवाद स्वरूप ग़ज़ल में तीनों स्वीकार्य है इसका कोई नियम में उल्लेख नहीं मिलेगा ...
जैसे तरह १२ को (तर्ह अनुसार) २१ भी सर्व स्वीकार्य है, इसका भी कोई नियम नहीं है ...
ये नियम के वो अपवाद हैं जो किसी न किसी रूप में हर विधा में मिलते हैं ....
सादर
आदरणीय अभिनव अरुण जी अच्छी गज़ल हुई है बधाई स्वीकारें ।
वाह वाह आदरणीय अरुण भाई जी लाजवाब ग़ज़ल कही है आपने आनंद आ गया पढ़कर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती |.......वाह ! क्या कहने, चेहरों पे सादगी हो तो क्या, दिल में सादगी ही नही
बहुत ही उम्दा गजल , तहे दिल से दाद कुबूल कीजिये आदरणीय अभिनव अरुण जी
अरुण भाई,
बहुत अच्छी गजल - बधाई हो
सारे चेहरे छुपे मुखौटों में ,
दिल में भी सादगी नहीं होती | ये शे'र बहुत अच्छा लगा
आदरणीय गिरिराज जी,
यही तो मसला है। हम हिन्दी में गजल लिखते समय उर्दू शब्दकोश क्यों देखें। उर्दू शब्दकोश उर्दू लिपि के लिए है। देवनागरी लिपि के लिए तो नहीं है। जब हम हिन्दी में गजल लिखते हैं तो क्या यह बेहतर नहीं कि हम उन्हें उनके सही रूप में लिखें। उच्चारण के समय मात्रा गिरा लें?
हिन्दी छंद विधान में का, के, जैसे कारकों की मात्रा गिराने का विधान है लेकिन हम लिखते तो उन्हें सही रूप में ही हैं?
सादर!
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