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तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

तुमसे मिलने की तारीखें तो तय कर लूँ,

मगर हो जाये फिर बरसात तो बुरा लगता है!

हर पल है चाह तेरी हर पल तेरी ही आरजू है,

तेरे दीदार की दिल में कोई जुस्तजू जगी है,

न समझो तुम मेरे  जज्बात तो बुरा लगता है!

सदियों से चाह है तेरे दीदार की,

अब तो हद हो गयी मेरे इंतज़ार की,

ये दिन तो बीत जाते है सदियों से लम्बे,

मगर बीत जाये चांदनी रात तो बुरा लगता है!

क्या अजब कशिश है मुझे ये तेरे इश्क की,

क्या कल्पनाये है आँखों में ये तेरे इश्क की,

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

न जाने कितना भटका हूँ अभी तक तेरी तलाश में,

बहुत  मय पी चूका हूँ  तुझसे मिलने की प्यास में,

आँखों में सूनापन और फिर दिल हो गम्जात तो बुरा लगता है!

तुम से न हो अगर बात तो बुरा लगता है,

तुम से न हो अगर मुलाकात तो बुरा लगता है!

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 17, 2013 at 1:55pm

 

सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई अनुरागजी।  लेकिन......  तारीफ ज्यादा करने से नखरे दिखाएगी ।

Comment by बृजेश नीरज on September 15, 2013 at 8:39pm

अच्छा प्रयास है आपका. आपको हार्दिक बधाई.

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 15, 2013 at 11:52am

सच कहा आपने डॉ साहब बुरा तो लगता है बहुत बुरा लगता है ऐसे में, प्रयास बेहद अच्छा किया है आपने इस हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2013 at 10:23am

सुन्दर रचना बनी है हार्दिक बधाई 

टिपण्णी क्या करू कुछ समझ नहीं आता है 

टिपण्णी न करू तो पढ़ा नहीं ऐसा लगता है 

Comment by annapurna bajpai on September 14, 2013 at 11:07pm
सुंदर रचना आ0 अनुराग जी । बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 14, 2013 at 2:08pm

आदरणीय अनुराग जी , सुन्दर नज़्म की रचना हुई है !!! रचना के लिये बधाई !!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 14, 2013 at 1:30pm

आदरनीय अनुराग जी ..

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!...शानदार रचना के लिए हार्दिक बधाई के साथ

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 14, 2013 at 11:21am

क्या अजब कशिश है मुझे ये तेरे इश्क की,

क्या कल्पनाये है आँखों में ये तेरे इश्क की,

क्या फिजाओं में है फैली महक तेरे इश्क की,

न समझो तुम मेरे हालात तो बुरा लगता है!.........वाह! क्या खूब कहा..दिल को छू गई ये पंक्तियाँ

बहुत ही गहरी रचना , बहुत बहुत बधाई ,आदरणीय डा. अनुराग जी

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