ग़ज़ल
वजन : 2212 2212
बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1।
जो धड़कनें पढ़ने लगे,
तो शेर कहना आ गया ।2।
जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।
जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।
दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।
(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर
Comment
टिप्पणी हेतु बहुत बहुत आभार प्रिय आशीष नैथानी जी।
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ अनिल मिश्रा जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्पणी पुरस्कार सदृश है, ओ बी ओ मंच आप सभी का मंच है बहुत बहुत स्वागत और अभिनन्दन है पुनः धन्यवाद प्रेषित है।
जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।|
वाह वाह, बहुत खूब !!
आपकी बहुमूल्य टिप्पणी हेतु आभार आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी |
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी और प्रिय पीयूष भाई, सराहना हेतु आप दोनो का आभार |
आदरणीय डाक्टर आशुतोष मिश्रा जी, ग़ज़ल पसंद करने के लिए आभार, अंतिम शेर मुझे भी अधिक पसंद है |
धन्यवाद आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी |
आपकी सराहना सर माथे पर आदरणीया प्रवीना मल्लिक जी |
सराहना और प्रोत्साहन हेतु आभार आदरणीया सरिता बहन |
बहुत बहुत आभार भाई जितेंद्र जी |
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