1.बीता हिन्दी दिवस भी, मना लिए सब जश्न!
न्याय लेख भी हो हिंदी, कौन करेगा प्रश्न!
2.नियम सरलता से बने, सब कुछ हो स्पष्ट
तर्क कुतर्क न बन जाय, बने वकील न भ्रष्ट.
3.मूल्य कर्म अनुरूप हो, हो न कोइ कंगाल.
दोउ हाथ दो पैर सम, अलग क्यों हो भाल!
4.मिहनत से धन आत है, बिन मिहनत धन जात.
मिहनत कर ले रे मना, काहे नहीं बुझात!
5.अहंकार को त्याग कर, करिए सदा सत्कर्म,
सोने की लंका गयी, बूझ न रावण मर्म.
6.नारी को सम्मान कर, नारी शक्ति महान
नारी के अपमान से, जगत नहीं अनजान!
-जवाहर लाल सिंह
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय भ्रमर जी, सादर अभिवादन!
आपका आशीर्वाद आवश्यक है बड़े भाई! आप तो मेरे प्रेरणास्रोत है! बहु बहुत आभार!
आदरणीय राम शिरोमणि जी, सादर अभिवादन!
कोशिश जारी रहेगी, आपलोगों का मार्गदर्शन अपेक्षित है! सादर
आदरणीया विजयश्री जी, सादर अभिवादन!
उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय जितेन्द्र जी, सादर अभिवादन!
उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार!
मूल्य कर्म अनुरूप हो, हो न कोइ कंगाल.
दोउ हाथ दो पैर सम, अलग भला क्यों भाल!
नारी को सम्मान कर, नारी शक्ति महान
नारी के अपमान से, जगत नहीं अनजान!
प्रिय जवाहर भाई एक से बढ़ कर एक दोहे सीख देने वाले ...
आभार
भ्रमर ५
आदरणीय जवाहर जी,सुंदर दोहावली//ये दोहे और भी सशक्त हो सकते है,पढेंगे तो आप स्वयं सुधर कर लेंगें ,आप सक्षम भी है ///सादर
सुंदर दोहावली बधाई स्वीकारें जवाहर जी
बहुत सुंदर दोहावली, बहुत बहुत बधाई आदरणीय जवाहर जी
आदरणीय परवीन जी प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार!
आदरणीय श्री गिरी राज जी, सादर अभिवादन!
आपके सुझाव पर अमल करने का पुन: कोशिश करूंगा. दरअसल इस मंच से मैं सुधार और सुझाव की ही आशा रखता हूँ.
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