इक हलचल सी चौखट पर
नयनों में हैं स्वप्न भरे
उड़ता-फिरता इक तिनका
पछुआ से संघर्ष रहा
पेड़ों की शाखाओं पर
बाजों का आतंक रहा
तितली के इन पंखों ने
कई सुनहरे रंग भरे
दूर क्षितिज की पलकों पर
इक किरण कुम्हलाई सी
साँझ धरा पर उतरी है
आँचल को ढलकाई सी
गहन तिमिर की गागर में
ढेरों जुगनू आन भरे
इन शब्दों के चित्रों में
दर्द उभर ही आते हैं
जाने क्यूँ पीड़ा से अब
राग छलक ही जाते हैं
इक छोटी सी आशा है
नित रग-रग में प्राण भरे
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका बहुत आभार!
आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बल मिला!
बेहद सुंदर भाव, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी
आदरणीय अरुण भाई आपके शब्द उत्साह बढ़ा देते हैं. आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बागी जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय सलीम साहब आपका बहुत शुक्रिया!
आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार!
आदरणीय बृजेश भाई जी वाह बेहद सुन्दर सुमधुर रचना भाई जी वाह दिल खुश कर दिया अपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.
बृजेश भाई, आपकी कविता मन भायी, भावों का सुन्दर सम्प्रेषण हुआ है, बधाई स्वीकार कीजिये ।
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