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इक हलचल सी चौखट पर

नयनों में हैं स्वप्न भरे

 

उड़ता-फिरता इक तिनका

पछुआ से संघर्ष रहा

पेड़ों की शाखाओं पर

बाजों का आतंक रहा

 

तितली के इन पंखों ने   

कई सुनहरे रंग भरे

 

दूर क्षितिज की पलकों पर

इक किरण कुम्हलाई सी

साँझ धरा पर उतरी है

आँचल को ढलकाई सी

 

गहन तिमिर की गागर में

ढेरों जुगनू आन भरे

 

इन शब्दों के चित्रों में

दर्द उभर ही आते हैं

जाने क्यूँ पीड़ा से अब

राग छलक ही जाते हैं

 

इक छोटी सी आशा है

नित रग-रग में प्राण भरे 

                 - बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

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Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:57pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:56pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार! आपके शब्दों से बल मिला!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 19, 2013 at 10:53pm

बेहद सुंदर भाव, बहुत बहुत बधाई आदरणीय बृजेश जी

Comment by Vindu Babu on September 19, 2013 at 10:52pm
वाह आदरणीय! बहुत ही प्रभावी प्रस्तुति की आपने! अन्तिम बन्द ने तो मन मोह लिया।
ढेरों बधाई आपको इस सरस गीत के लिए।
सादर
Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:47pm

आदरणीय अरुण भाई आपके शब्द उत्साह बढ़ा देते हैं. आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:46pm

आदरणीय बागी जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:46pm

आदरणीय सलीम साहब आपका बहुत शुक्रिया!

Comment by बृजेश नीरज on September 19, 2013 at 10:45pm

आदरणीय रविकर जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 19, 2013 at 10:41pm

आदरणीय बृजेश भाई जी वाह बेहद सुन्दर सुमधुर रचना भाई जी वाह दिल खुश कर दिया अपने बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 19, 2013 at 9:52pm

बृजेश भाई, आपकी कविता मन भायी, भावों का सुन्दर सम्प्रेषण हुआ है, बधाई स्वीकार कीजिये ।  

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