For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं क्या हूँ

बहुत सोचा

पर सुलझी न गुत्थी

 

शब्द से पूछा तो वह बोला,

‘मैं ध्वनि हूँ अदृश्य

रूप लेता हूँ

जब उकेरा जाता है

धरातल पर’

 

पेड़ से पूछा तो बोला

‘मैं हूँ बीज का विस्तार’

‘और बीज क्या है?’

‘वह है मेरा छोटा अंश’

 

अजब रहस्य

विस्तार का अंश

अंश का विस्तार

खुलती नहीं रहस्य की पर्तें

एक सतत क्रम-

सूक्ष्म के विस्तार

विस्तार के सूक्ष्म होने का;

ध्वनि से शब्द-चित्र

शब्द का प्रतिध्वनित होना;

वाष्प से बूँद

बूँद से जल, नदी, सागर

फिर उनका वाष्पीकरण

 

चक्र है

पूरा ब्रहमाण्ड,

आकाश गंगा,

सौर मण्डल,

सभी ग्रह

 

धरती

घूमती है धुरी पर

परिक्रमण में सूर्य के

और इस धरती पर

सभी सजीव, निर्जीव के संग

मैं सदेह

 

पर देह छूटेगी न

तब

तब मैं ‘मैं’ होऊँगा

या कुछ और

कैसे देखूँगा तुम्हें हँसते

कैसे समझूँगा उदास हो

 

शायद हो जाऊँ हवा

और हवा के संग

यह धरती, आसमान,

चाँद, तारे, सूरज,

ग्रह, आकाशगंगा

सबको पार करते

पहुँच जाऊँ

सुदूर बहमाण्ड में

या उसके भी आगे

तब शायद समझ पाऊँ

यह सारा रहस्य

लेकिन सुना है

वहाँ तो शून्य है

हवा तो होती नहीं

तो, कैसे जाऊँगा मैं

वहाँ?

-        बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 1088

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on September 27, 2013 at 8:18pm

आदरणीय राम भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by ram shiromani pathak on September 27, 2013 at 3:59pm

सच में बहुत रहस्य है आदरणीय भाई ब्रिजेश जी //बहुत बहुत बधाई आपको //सादर 

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 10:02pm

आदरणीय प्राची जी रचना पर आपकी उपस्थिति हौसला बढाती है! आपका आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 9:35pm

कभी सुलझता कभी उलझता अंतर्द्वंद शून्य तलाशता हर दिशा में घूम आया.. :))

सादर शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:11pm

आदरणीय राजेश भाई, आपका आभार!

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 3:17pm

जय हो, एक अलग तरह की प्रस्‍तुति, सादर

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:42am

आदरणीय वीनस भाई बहुत शुक्रिया! :))

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:41am

आदरणीय जीतेन्द्र जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:41am

आदरणीया गीतिका जी, रचना पर आपकी उपस्थिति से मैं धन्य हुआ. आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on September 26, 2013 at 6:39am

आदरणीया अन्नपूर्णा जी, आपका हार्दिक आभार!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service