तुमको देखे
बरसों बीते
सूखे फूल
किताबों में
अहिवाती बस
एक छुअन ही
रही महकती
हाथों में
मन के कोरे
काग़ज भी तो
क्षत को गिरे
प्रपातों में
अनगिन पारिजात
मगर तुम
रख गए
कलम-दावातों में
आओ ना
इस इंद्रधनुष पर
दो पल बैठें
बात करें
शावक जैसी
कोमल राते
उतर रही
आहातों में
(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
जी आदरणीय, सही कहा आपने खतरे की घंटी तो है ही, महसूस भी कर रहा हूं, पर मनवां है कि एक चीज सही करते-करते कहीं और उलझ जाता है, सादर
//मैंने इसे टंकित करने के समय पढ़ा भी था पर शायद सुधार कहीं और कर बैठा ।//
खतरे की तब घण्टी समझिये बजने लगी है.. हा हा हा हा............... ;-)))))
सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीय, टंकण त्रुटियां जो आपने बताई हैं वो सचमुच हैं और मैंने इसे टंकित करने के समय पढ़ा भी था पर शायद सुधार कहीं और कर बैठा । सादर
अहिवाती बस
एक छुअन ही
रही महकती
हाथों में................ और.. हम यहीं रह गये..वाह वाह
बेखयाली में मन के मुग्धाने का सुन्दर इशारा हुआ है, आदरणीय.
अलबत्ता कुछ टंकण त्रुटियाँ पता नहीं क्यों पकड़ में नहीं आयीं अन्यान्य विद्वानों को. जैसे,
मन के कोरे
काग़ज भी तो
क्षत को गिरे..... हो होना क्या उचित न होगा ?
प्रपातों में
अनगिन पारिजात
मगर तुम
रख गए
कलम-दावातों में... .........दवात तो फिर दवात ही है साहब..
लेकिन हमेशा की तरह दिल जीत लिया आपने..
आदरणीय अरून शर्मा 'अनन्त' जी, आप भी भाव में बह गए, मैंने समझा आप पकड़ेंगें, इन लाइनों को देखिए '
आओ ना/इस इंद्रधनुष पर/दो पल बैठें/बात करें/शावक जैसी/कोमल राते/उतर रही/आहातों में
इंद्रधनुष दिन में निकलता है और वहां बैठकर शावक जैसी रातों को कैसे देख सकते हैं, यह विरोधाभास है, सादर
आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज जी
आदरणीय राजेश भाई , बहुत उम्दा रचना , सुन्दर भाव !! आपको बहुत बधाई !!
इस छोटी सी रचना पर अपनी उपस्थिति से मेरा मान बढ़ाने के लिए सबका आभार प्रकट करता हूं, सादर
वाह आदरणीय राजेश भाई बेहतरीन प्रवाहमयी प्रस्तुति लाजवाब पंक्तियाँ, बहुत बहुत सुन्दर बहुत बहुत बधाई स्वीकारें भाई जी .
आओ ना
इस इंद्रधनुष पर
दो पल बैठें
बात करें
शावक जैसी
कोमल राते
उतर रही
आहातों में ... वाह अद्भुत कितना सुन्दर बिम्ब खींचा है भाई आनंद आ गया.
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