रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए
खुदा का चाँद भी फिर लाजबाव हो जाए
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तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए
.
तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए
.
उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ
तेरा चेहरा गर कोई किताब हो जाए
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हुस्नवाले संवर सकती है शायरी मेरी
कभी हमराह मेरे जो तेरा शबाब हो जाए
-सचिन देव -
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सादर नमस्कार, वीनस केसरी जी आपके विचारों को जानकर मन मैं व्याप्त कुछ शंकाओं / आशंकाओं का पटाक्षेप हुआ .... और ये निराधार ही साबित हुईं, और किसी भी वे-वजह के विवाद कि स्तिथि उत्पन्न होने से बच गई, जिसकी कि आपकी कल की क्रिया की अपनी प्रतिक्रिया पर होने की आशंका थी..., किन्तु आपने मेरे जवाव मैं छिपे मेरे इरादों को समझा और मैं अपने जवाव से आप को किसी भी प्रकार से आश्वस्त कर सका तो ये मेरे लिए सुकून की बात है ... और आपकी शुभकामनाएं पाकर काफी उत्साहित महसूस कर रहा हूँ... ! आपके विचारों का सदैव स्वागत रहेगा.... ! हार्दिक आभार आपका !
हाँ भाई मेरा कमेन्ट थोडा तीखा, थोडा कठोर था, मगर यकीन जानिये आप अपने विचार को स्पष्ट रूप से रखें इसके लिए ये आवश्यक था,
आप मंच पर बने रहें
विधागत मूलभूत तत्वों को जानें समझें
यही कामना है
यही शुभकामना है
जब हम सामने वाले की बात को काटने के लिए कुछ भी कहना शुरू कर देते हैं तो एक दिन हम अपनी बात भी काट देते हैं और विरोधाभास पैदा होता है, यदि हमारी एक विधारधारा हो तो ऐसी नौबत कभी नहीं आती ,,,,
आपका स्पष्ट मुखर हो कर कहना कि,
मुझे लगता है शायद अब मैंने सीखने की दिशा मैं सही राह पकड़ ली है ... तो फिलहाल कहीं और जाने का इरादा नही है ....
मंच को आश्वस्त करता है और इस दिशा में आपके बढाए कदम की सराहना करता हूँ
निरुत्साहित न होईये, हर बात का एक अर्थ होता है उन अर्थों के साथ स्वीकारने पर हम समझ को विस्तार देते हैं
आपका तहे दिल से स्वागत है
सादर
सादर नमस्कार महोदया वीनस केसरी जी ... आपकी प्रतिक्रिया का सही आशय मैं समझ नहीं पा रहा हूँ , जैसा कि आपने खुद कहा मैं पहले से ही दिग्भ्रमित हूँ अपनी रचना की विधा के बारे मैं ... और फिर आपके ये कम से कम कुछ कठोर शब्दों से भरी प्रतिक्रिया थोडा निरुत्साहित सा ही करती है ..... यधपि आपके द्वारा कही गई अंतिम पंक्ति
आशा करता हूँ आगे आपकी विधाजन्य रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी,,, कम से कम कोशिश तो आप कर ही सकते हैं ...
इतनी कठोरता के बीच थोड़ी सी उम्मीद जगाती है और हौसला देती है ... बाकी .... आपके द्वारा कही बातों का आपकी ही भाषा मैं उत्तर देना फिर से इस मंच पर वही घिसा - पिटा विवाद उत्पन्न करेगा ... और रही बात राह पकड़ने की ... तो मुझे लगता है शायद अब मैंने सीखने की दिशा मैं सही राह पकड़ ली है ... तो फिलहाल कहीं और जाने का इरादा नही है .... बस इतना ही कह सकता हूँ विनम्रता के साथ .... आपके विचारों का सदा स्वागत रहेगा महोदय.... शुक्रिया
आदरणीया अनुपमा बाजपेई जी .... प्रयास की सराहना हेतु .... आपका हार्दिक आभार !
प्रयास की सराहना के लिए हार्दिक धन्यबाद ब्रिजेश जी... और आपकी सलाह हेतु ह्रदय से आभार... निश्चित ही इस पर अमल करने का प्रयास रहेगा .... !
आदरणीय विजय निकोर जी .... आपका हार्दिक शुक्रिया प्रोत्साहन के लिए ... !
आदरणीय मीना पाठक जी... आपका हार्दिक आभार ... रचना पर अपने विचार देने के लिए ..... !
महोदय आप एक कमेन्ट में कहते है -
//. इस पर इतना ही कहना चाहूँगा भाई कि आप जिसे गजल कह रहे हैं, उसे मैं सिर्फ अपने मन से निकली एक रचना कहता हूँ..//
फिर आगे दूसरे कमेन्ट में आप लिखते हैं -
// आपका हार्दिक शुक्रिया चंद्रशेखर पाण्डेय जी ... जो आपने गजल की भावना को मान दिया ! //
ऐसा विरोधाभास ??? !!!!
भाई ज़रा आप स्पष्ट करेंगे कि आप इस काव्य रचना को किस विधा के अंतर्गत मानते हैं ???
और आपको सचेत कर दूं कि आपका रटा-रटाया घिसा-पिटा.. /काव्य को काव्य रहने दो कोई नाम न दो/ यहाँ ओबीओ पर नहीं चलेगा
बहर का इतना ही भय है तो रदीफ काफिया से क्यों उलझे पड़े हैं ???
अतुकांत लिखिए, कहानी लिखिए, उपन्यास लिखिए
ये आपस में सीखने सिखाने का मंच है,,,, सीखना हो तो मन से सीखिए,
वाहवाही के शौक़ीन हों तो फेसबुक की राह लगिये
आशा करता हूँ आगे आपकी विधाजन्य रचनाएँ पढ़ने को मिलेंगी,,, कम से कम कोशिश तो आप कर ही सकते हैं ...
आदरणीय सचिन जी काफी अच्छा प्रयास है , बहुत सुंदर , बधाई आपको ।
अच्छा प्रयास है. इस प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!
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