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अपनी  निगाहों से मेरा हर अक्श मिटाने चला है वो

दिल से अपने अब मेरा हर नक्श मिटाने चला है वो

 

मेरी महफ़िल की रंगीनियत कम होने लगी शायद   

इसलिए साथ गैरों के महफिलें सजाने चला है वो

 

उस शख्स की शख्सियत भी क्या होगी यारो

मोहब्बत से भरा एक शख्स मिटाने चला है वो

 

जिसने खुद ही जलाई थी मोहब्बत की शमा कभी

उस शमा की आखिरी लौ भी अब बुझाने चला है वो

 

और जिनकी रग-रग मैं हैं धोखे और फरेब भरे

साथ उनके अब यारियों निभाने चला है वो

 

**************************************************

 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 879

Comment

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Comment by Sachin Dev on October 10, 2013 at 3:25pm

आदरणीया मेघना जी..... आपका हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए ....

Comment by Meghna Gupta Jogani on October 10, 2013 at 2:43pm

एक कडवी हकीकत को बड़ी खूबसूरती से दर्शाया गया है .बधाई सचिन जी.

Comment by Sachin Dev on October 7, 2013 at 12:46pm

ह्म्म्म.... वाहिद भाई.... बहुत दिनों बाद इस मंच पर अपनी पोस्ट पर पाकर कितनी प्रसन्नता हुई बयाँ करना मुश्किल है भाई... आपके स्नेहपूर्ण स्वागत के लिए हार्दिक आभार आपका !

Comment by Sachin Dev on October 7, 2013 at 12:44pm

ब्रिजेश जी पोस्ट पर आपके उत्साहवर्धन का हार्दिक आभार ! 

Comment by Sachin Dev on October 7, 2013 at 12:43pm

भाई कपीश जी आपका हार्दिक आभार ! 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 5, 2013 at 8:26pm

स्वागतम सचिन भाई!

Comment by बृजेश नीरज on October 5, 2013 at 7:47pm

सुन्दर रचना! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 5, 2013 at 4:47pm

  बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है आपने भाई सचिनदेव जी । बधाई । 

Comment by Sachin Dev on October 5, 2013 at 1:42pm

आदरणीया परवीन जी .... आपकी प्रोत्साहित करती बधाई ह्रदय से स्वीकार ! और आपका हार्दिक आभार ! 

Comment by Parveen Malik on October 5, 2013 at 1:37pm
वाह बहुत सुन्दर रचना सचिन जी .. बधाई स्वीकारिये :)

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