रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए
खुदा का चाँद भी फिर लाजबाव हो जाए
.
तेरे गुलाबी होंठों पे जो गिर जाए शबनम
बा-खुदा शबनम खुद शराब हो जाए
.
तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए
.
उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ
तेरा चेहरा गर कोई किताब हो जाए
.
हुस्नवाले संवर सकती है शायरी मेरी
कभी हमराह मेरे जो तेरा शबाब हो जाए
-सचिन देव -
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है। बधाई आदरणीय सचिन जी।
//तेरी उदासी से होती है सीने मैं चुभन
तू जो हंस दे तो काँटा गुलाब हो जाए //
सादर,
विजय निकोर
उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ
तेरा चेहरा गर कोई किताब हो जाए
.... गज़ब
बहुत बधाई आप को आ० सचिन जी
आपका हार्दिक आभार विजयाश्री जी...... आपके बहुमूल्य प्रोत्साहन के लिए !
रात की चांदनी मैं जो तू बे-नकाब हो जाए
बखुदा का चाँद भी फिर लाजबाव हो जाए ........ बहुत खूब
उम्र भर हाथों मैं लेकर पढता ही रहूँ
तेरा चेहरा गर कोई किताब हो जाए ..........वाह
हार्दिक बधाई सचिन जी
स्वागत है भाई सदैव ह्रदय से स्वागत है शुभकामनाएं सचिन साथ ही साथ अगली बहर में ग़ज़ल की प्रतीक्षा के साथ.
बहुत - बहुत शुक्रिया अरुण भाई.... निश्चित ही आपकी सलाह पर अमल करने का भरसक प्रयास रहेगा.... और आपका साथ सदा ही अपेक्षित है ..... ! एक बार फिर से हार्दिक आभार आपका !
सचिन भाई आभार आपका, आपने कल मुझे फेसबुक पर ये कहा आपने एक टूटी फूटी ग़ज़ल ओ बी ओ पर पोस्ट की है मैं अपने विचार रखूं भाई इस वजह से मैंने आपसे प्रश्न किया. भाई जहाँ तक मन से निकले भाव की बात है तो भाव सदा अच्छे ही होते हैं आपने प्रयास भी बहुत अच्छा किया है आप इसे ग़ज़ल का रूप दे सकते हैं यदि थोडा सा श्रम करें. मैं आपको यही कहूँगा कि भाई इस मंच से तमाम मित्रों ने ग़ज़ल सीखी है और सीख रहे हैं आप भी पाठशाला में जाकर ग़ज़ल सीख सकते हैं. बाकी मैं आपके साथ हूँ. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें.
आपका हार्दिक शुक्रिया चंद्रशेखर पाण्डेय जी ... जो आपने गजल की भावना को मान दिया !
शुक्रिया भाई बैधनाथ जी ... प्रोत्साहन के लिए
नमस्कार भाई अरुण जी, सबसे पहले तो आपका हार्दिक शुक्रिया पोस्ट पर नजर डालने के लिए.... जैसा कि आपने प्रश्न किया है कि मैं गजल की बहर से अवगत कराऊं तब आप इस पर कुछ कह सकेंगे... इस पर इतना ही कहना चाहूँगा भाई कि आप जिसे गजल कह रहे हैं, उसे मैं सिर्फ अपने मन से निकली एक रचना कहता हूँ.. गजल विधा या अन्य किसी भी साहित्यिक विधा की तकनीकी अनभिज्ञता के कारण मैं आपके प्रश्न का उत्तर देने मैं बिलकुल भी समर्थ नही हूँ ..... इस बारे मैं यही कहूँगा जो पहले भी कई रचनाकार कह चुके होंगे कि मैं सिर्फ मन के भाव को ही शब्द देने की कोशिश करता हूँ... और इस रचना मैं भी मैंने यही किया है .... मेरी इस तकनीकी अनभिज्ञता की वजह से यदि आप इस रचना पर कुछ भी कह पाने मैं खुद को असहज महसूस करते हैं तो ... आप बाध्य नहीं है अरुण भाई... और यदि मेरी इस तकनीकी कमी के बारे मैं मुझे कुछ कहना चाहें तो आप स्वतंत्र हैं ... आपके विचारों का स्वागत है ...
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online